"मेरो धरती बाँचिरहोस् / कुन्ता शर्मा" के अवतरणों में अंतर
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुन्ता शर्मा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=कुन्ता शर्मा | |रचनाकार=कुन्ता शर्मा | ||
|अनुवादक= | |अनुवादक= | ||
− | |संग्रह= | + | |संग्रह= मेरो मान्छे / कुन्ता शर्मा |
− | }} | + | }} |
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
{{KKCatNepaliRachna}} | {{KKCatNepaliRachna}} | ||
पंक्ति 10: | पंक्ति 10: | ||
उर्लिरहेको विशाल सृष्टिसिन्धुको | उर्लिरहेको विशाल सृष्टिसिन्धुको | ||
− | एउटा | + | एउटा सूक्ष्म बिन्दु म |
− | सुन्दर | + | सुन्दर फोको भएर हराऊँ लहर–तरङ्गहरूमा |
− | या | + | या बिलाऊँ बालुवाका विराट् व्यूहहरूमा |
म नरहे पनि | म नरहे पनि | ||
युगले मेरो कथा कहे पनि नकहे पनि | युगले मेरो कथा कहे पनि नकहे पनि | ||
− | + | मानव–सभ्यता हाँसिरहोस् | |
मेरो धरती बाँचिरहोस् । | मेरो धरती बाँचिरहोस् । | ||
तप्कँदै छन् निरन्तर आयुका थोपाहरू | तप्कँदै छन् निरन्तर आयुका थोपाहरू | ||
− | + | एक दिन रिक्त हुनेछ अँजुली यो समयको | |
जीवनहीन हुनेछ, शुष्क हुनेछ | जीवनहीन हुनेछ, शुष्क हुनेछ | ||
− | मृत्युको चिसो | + | मृत्युको चिसो अँगालो फैलिएपछि |
− | जीवनपुष्प ओइलिएपछि | + | जीवनपुष्प ओइलिएपछि |
त्यसपछिको समयमा | त्यसपछिको समयमा | ||
लाखौँ शताब्दीहरूमा, करोडौँ युगहरूमा | लाखौँ शताब्दीहरूमा, करोडौँ युगहरूमा | ||
− | + | जीवनशून्य नहोस् धरतीको काख | |
+ | मानव–सभ्यता हाँसिरहोस् | ||
+ | मेरो धरती बाँचिरहोस् । | ||
+ | |||
मेरो शरीर पञ्चभूतमा मिलेपछि पनि | मेरो शरीर पञ्चभूतमा मिलेपछि पनि | ||
− | + | चेतना कतै बाँकी रहेछ भने | |
− | चेतना कतै बाँकी रहेछ भने | + | सम्बन्ध–विच्छेद भएपछि पनि धरतीसँग |
− | + | यसको पारि कुनै स्थान रहेछ भने | |
− | यसको | + | |
म त्यतै रहेर | म त्यतै रहेर | ||
यस धरतीको हरित–परिधानयुक्त वक्ष | यस धरतीको हरित–परिधानयुक्त वक्ष | ||
− | सरसराउँदै बग्ने मधुर | + | सरसराउँदै बग्ने मधुर वासन्ती बतास |
− | + | नीर–नीलिमायुक्त शारदीय आकाश | |
− | झर्ना र | + | झर्ना र झिलहरू |
खोल्सा र खोल्सीहरू | खोल्सा र खोल्सीहरू | ||
− | नदी | + | नदी, सागर र महासागरहरू |
घना जङ्गलहरू, चिसा चिस्यान र ओसहरू | घना जङ्गलहरू, चिसा चिस्यान र ओसहरू | ||
− | शीतल | + | शीतल जून र झलमल घामहरू |
− | + | कुनै–कुनै बिर्सनेछैन | |
− | + | नियालिरहनेछु हरेक क्षण प्रत्येक पल | |
− | + | उर्वर माटोलाई मेरो प्यारो धरतीलाई | |
− | फैलाएर आशिषका | + | फैलाएर आशिषका हत्केलाहरू |
− | प्रवाहित गर्दै | + | प्रवाहित गर्दै वाणीविहीन शब्दका पुञ्जहरू |
− | + | मानव–सभ्यता हाँसिरहोस् | |
मेरो धरती बाँचिरहोस् । | मेरो धरती बाँचिरहोस् । | ||
− | + | आओस् शिशिर समीरका | |
− | + | सृजनायुक्त कुचीहरू बोकेर | |
− | + | वसन्त छाओस् नवपल्लवहरू | |
− | + | धरतीभरिभरि पोखेर | |
− | + | सर्वत्र पुष्पित होस्, सुगन्धित होस् धरती | |
− | + | आतङ्कित नहोस् सृष्टि कहिल्यै | |
− | + | बूढो नहोस् यो तेजस्वी सूर्य | |
− | + | आलिङ्गनबद्ध रहोस् धरती सधैँ–सधैँ | |
− | + | ननजिकिऊन् क्षुद्र उल्काहरू | |
− | + | नदोहोरिऊन् अखण्ड प्रलय, महाप्रलय | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | ननजिकिऊन् | + | |
− | नदोहोरिऊन् अखण्ड प्रलय | + | |
र लामा हिमयुगका कथाहरू | र लामा हिमयुगका कथाहरू | ||
भयावह विस्फोटनका व्यथाहरू | भयावह विस्फोटनका व्यथाहरू | ||
− | + | करोडौँकरोड युगका यात्राहरूमा पनि | |
− | सकिएर | + | सकिएर ऊर्जा |
− | + | शीताङ्ग हुन नजाओस् धरती | |
− | मेरो धरती बाँचिरहोस् | + | मानव–सभ्यता हाँसिरहोस् |
+ | मेरो धरती बाँचिरहोस् । | ||
− | + | सौरमण्डलको उर्वर, | |
− | अनि मोहकस्वरूपा धरती | + | अनि मोहकस्वरूपा धरती |
कहिल्यै चञ्चल नहोस्, जर्जर नहोस् | कहिल्यै चञ्चल नहोस्, जर्जर नहोस् | ||
− | + | नअडियोस् एक निमेष पनि | |
− | + | अलिकति पनि विचलित भएमा धरती | |
− | + | आफ्नै कक्षमा घुमाइको क्रममा | |
− | प्राप्त गरेका | + | अलिकति मात्र शिथिलता आए पनि |
− | ओजस्वी र समृद्ध इतिहास भावी | + | मानव–सभ्यता धराशयी हुन सक्छ |
− | सुरक्षित रहोस् संरक्षित होस् | + | या सन्तुलन गुमाएमा |
− | यही | + | या बाटो फेरेमा |
− | मेरो धरती बाँचिरहोस् | + | धुम्रकेतुसमान |
+ | बतासिँदै सौरमण्डलमा कुदेमा | ||
+ | या टकराएमा कुनै उल्कापिण्डसँग | ||
+ | र टुक्राटुक्रा भएर ब्रह्माण्डमा हराएमा | ||
+ | या घुम्दैफिर्दै सुरक्षित हुँदै | ||
+ | आपनै कक्षमा फेरि फिरेमा पनि | ||
+ | ध्वंस हुनेछ सृष्टि | ||
+ | मासिनेछ मानवजाति | ||
+ | पानीपानी अनि जीवनशून्य हुनेछ | ||
+ | फेरि पनि जीवन–योग्य हुन पुगेमा | ||
+ | हुन्छन् या हुँदैनन् मोनेराहरू ? | ||
+ | या फेरि विकसित हुन्छन हुँदैनन् | ||
+ | मोनेराहरू मानवजातिमा | ||
+ | फेरि पनि मुक्त हुन्छन् या हुँदैनन् हातहरू | ||
+ | त्रसित मनले हृदयबाटै कामना गर्दछु | ||
+ | मानवसृष्टि सधैँ सुरक्षित रहोस् | ||
+ | मानव–सभ्यता हाँसिरहोस् | ||
+ | मेरो धरती बाँचिरहोस् । | ||
+ | |||
+ | कामना गर्छु | ||
+ | कतै हानिँदै नआओस् कुनै उल्का | ||
+ | र ध्वस्त नपारोस् धरती | ||
+ | कतै विचलित नहोस् आफ्नो कक्षबाट | ||
+ | र नकुदोस् धुम्रकेतु सदृश्य | ||
+ | होइन, यदि अवसान भयो भने धरतीको | ||
+ | साँच्चै नै अवसान भयो भने | ||
+ | मानवसृष्टिको | ||
+ | सबै कुरा सकिनेछ, | ||
+ | सबै कुरा व्यर्थ हुनेछ | ||
+ | न कुनै इतिहास हुनेछ | ||
+ | न स्वार्थ निन्दित हुनेछ | ||
+ | न बलिदान प्रशंसित हुनेछ | ||
+ | ब्रह्माण्डको यात्रारत धरतीमा | ||
+ | अनन्त–अनन्त समयसम्म | ||
+ | चलिरहोस् सुवासयुक्त मन्दमन्द बतास | ||
+ | फक्रिरहोस् मानव–सभ्यता | ||
+ | युगौँ–युगसम्म सुरम्य होस् सुरक्षित होस् | ||
+ | ब्यूँझदै असभ्यताको गाढा निद्राबाट | ||
+ | प्राप्त गरेका सुन्दरतम उपलब्धिहरू पुर्खाहरूले | ||
+ | ओजस्वी र समृद्ध इतिहास भावी पुस्ताका लागि | ||
+ | सुरक्षित रहोस्, संरक्षित होस् | ||
+ | यही आकाङ्क्षा फलोस्–फुलोस् | ||
+ | मेरो धरती बाँचिरहोस् । | ||
+ | |||
+ | धेरै “म”हरू बितिसके | ||
+ | ओइलाएर झरिसके | ||
+ | यस विराट् सृष्टिमा | ||
+ | म रहनु या विघटित हुनुमा | ||
+ | छैन कुनै भिन्नता | ||
+ | युगको अनन्त यात्रामा | ||
+ | ती जो मरे जति मरे | ||
+ | ती जसले होमेर गए आफूलाई | ||
+ | बाँच्नुको मीठो मोह त्यागेर | ||
+ | परिवर्तनको महासमरमा, | ||
+ | अन्धकारको विरूद्ध, असभ्यताको विरूद्ध | ||
+ | उठाएर मुट्ठीमा धरतीको माटो | ||
+ | चुमेर गए मृत्युका कठोर हत्केलाहरू | ||
+ | नष्ट हुनुहुँदैन सौरमण्डल | ||
+ | ध्वस्त हुनुहुँदैन धर्ती | ||
+ | नष्ट हुनुहुँदैन मानव–सृष्टि | ||
+ | मानव–सभ्यता हाँसिरहोस् | ||
+ | मेरो धरती बाँचिरहोस् । | ||
+ | |||
+ | ती जसले जीवनको बलिदान गरे | ||
+ | आत्मोत्सर्गको, अलौकिक साहसको | ||
+ | इतिहासहरू निर्माण गरे | ||
+ | ती जसले रमणीय | ||
+ | र उर्वरा बनाए धरतीलाई | ||
+ | ती | ||
+ | जसले सभ्य र सुन्दर बनाए समाजलाई | ||
+ | नसुकून् पसिना र रगतका धाराहरू | ||
+ | जो तिनले बगाए | ||
+ | नबिलाऊन् साहस र त्यागका | ||
+ | उदाहरणहरू | ||
+ | जो तिनले प्रस्तुत गरे | ||
+ | सबै कायम होस् सधैँ कायम होस् | ||
+ | मानवले उपलब्धिको शिखर चुमोस् | ||
+ | फैलँदै जाओस् सिन्धु मानव–सभ्यताको | ||
+ | मेरो धरती बाँचिरहोस् । | ||
+ | |||
+ | युगौँयुगको यात्रा तय गरेर | ||
+ | विकासक्रमका लामा सिँढीहरू चढेर | ||
+ | मोनेराबाट विकसित भएको मानिस | ||
+ | अविश्वसनीय प्रगतिको मार्ग तय गरेर | ||
+ | वर्तमानसम्म आइपुगेको मानिस | ||
+ | मात्र केही सेकेन्ड अडिएमा पनि यो धरती | ||
+ | अनिष्ट हुनेछ, सर्वनाश हुनेछ, मानवशून्य हुनेछ | ||
+ | फेरि च्याहाँरच्याहाँर गर्दै | ||
+ | जन्मन्छन् वा जन्मँदैनन् मानवशिशुहरू | ||
+ | फेरि कति समय लाग्ने हो | ||
+ | जङ्गली अवस्थाबाट सम्यताको सँघार टेक्न | ||
+ | असभ्यताको, बर्बरताको निद्राबाट | ||
+ | ब्यूँझिएको मानिस | ||
+ | प्रगतिको शिखर चुम्दै जाओस् | ||
+ | मानव–सभ्यता हाँसिरहोस् | ||
+ | मेरो धरती बाँचिरहोस् । | ||
+ | |||
+ | सधैँसधैँ सुरक्षित रहोस् | ||
+ | कष्टकर भोगाइबाट प्राप्त | ||
+ | सुन्दरतम उपलब्धिहरू | ||
+ | नमेटियोस् समृद्ध र ओजस्वी | ||
+ | इतिहास मानवजातिको | ||
+ | घृणाले थुक्ने कोही भएनन् भने | ||
+ | दुष्टहरूको नीचतालाई | ||
+ | श्रद्धाले झुक्ने कोही रहेनन् भने | ||
+ | वीरहरूको बलिदानलाई | ||
+ | के सार्थक भयो र पिएको विषका प्यालाहरू | ||
+ | के मतलब भयो स्विकारेको अग्निदाहलाई | ||
+ | नमेटियोस् मानिसको गौरवपूर्ण इतिहास | ||
+ | यही आकाङ्क्षा फलोस्–फुलोस् | ||
+ | मानव–सभ्यता हाँसिरहोस् | ||
+ | मेरो धरती बाँचिरहोस् । | ||
+ | |||
+ | युद्धको घाउले क्षतविक्षत | ||
+ | नहोस् यसको छाती | ||
+ | सन्त्रास फैलाइरहेका | ||
+ | आणविक अस्त्रभण्डारहरू नष्ट होऊन् | ||
+ | अमरत्वको अमृत बर्साओस् मानिसले | ||
+ | बन्द होऊन् विनाशका नगराहरू | ||
+ | खुलून् प्रगतिका बाधक तगाराहरू | ||
+ | प्रेमको पर्याय बनोस् मानिस | ||
+ | किरणका तोरणहरू सधैँ फरफराइरहून् | ||
+ | न्यानो घाम ओर्लिरहोस् बस्तीबस्तीमा | ||
+ | नमेटियोस् कष्टले निर्माण गरेको | ||
+ | बलिदानले प्राप्त गरेको | ||
+ | मानव–सभ्यता र गौरवको इतिहास । | ||
+ | धरती शीतल सुन्दर छहारी बनोस् | ||
+ | लडून् दम्भ अनि स्वार्थका भकारीहरू | ||
+ | मानिस प्रेमयुक्त बनोस्, भयमुक्त बनोस् | ||
+ | सबैसबै मानिसको मनमा बुद्ध बसून् | ||
+ | युद्धले क्षतविक्षत भएको छातीमा | ||
+ | शान्तिको अक्षय लिउन घसून् | ||
+ | मेरो आकाङ्क्षा फलोस्–फुलोस् | ||
+ | मानव–सभ्यता हाँसिरहोस् | ||
+ | मेरो धरती बाँचिरहोस् । | ||
+ | |||
+ | बाँच्नु मीठो हुँदो रहेछ, | ||
+ | कुनै स्वादिष्ट व्यञ्जनभन्दा पनि | ||
+ | बाँच्नु आकर्षक हुँदो रहेछ | ||
+ | अमूल्य आभूषणभन्दा पनि | ||
+ | महाङ्कालको अँगालामा बाँधिएर | ||
+ | महानिद्रामा प्रवेश गर्नुअघि | ||
+ | बिहान मिरमिरेअघिको समयजस्तो | ||
+ | या बेलुका ठूलो साँझको बेलाजस्तो | ||
+ | मेरो चेतना जब निदाउँदै जानेछ | ||
+ | त्यो अस्पष्ट चेतनामा पनि | ||
+ | म कामना गर्नेछु | ||
+ | जोडेर जर्जर हत्केलाहरू | ||
+ | मानव–सभ्यता हाँसिरहोस् | ||
+ | मेरो धरती बाँचिरहोस् । | ||
+ | |||
+ | अङ्कित हुन पुगून् या नपुगून् | ||
+ | मेरा पदचिह्नहरू शिलापत्रमा समयको | ||
+ | यो सृष्टिवृक्षबाट | ||
+ | म पहेलिँदै झरेपछि पनि | ||
+ | यो अथाह ब्रह्माण्डमा | ||
+ | घुमिरहेको मेरो धरतीमा | ||
+ | खुल्दै जाऊन् | ||
+ | ज्ञानका नयाँ–नयाँ क्षितिजहरू | ||
+ | फक्रँदै जाऊन् | ||
+ | शान्ति र स्नेहका फूलहरू | ||
+ | मानिस सधैँ पुलकित रहोस् | ||
+ | मानव–सभ्यता हाँसिरहोस् | ||
+ | मेरो धरती बाँचिरहोस् । | ||
+ | |||
+ | करोडौँकरोड वर्षको यात्रापछि | ||
+ | जब ऊर्जाहीन अनि शीताङ्ग | ||
+ | हुँदै जानेछ मेरो धरती | ||
+ | मानिसले आर्जन गरेका चमत्कारहरूले | ||
+ | उसले प्राप्त गरेका | ||
+ | ज्ञानका विज्ञानका नयाँ आयामहरूले | ||
+ | विभिन्न ग्रहमा उपग्रहमा उसले गरेका | ||
+ | अन्वेषण र खोजहरूले | ||
+ | उसले प्राप्त गरेका | ||
+ | अविश्वसनीय उपलब्धिहरूले | ||
+ | ऊर्जा दिन सकोस्, तप्तता दिन सकोस् | ||
+ | कोमल–कोमल, स्निग्ध अनि शुभ्र | ||
+ | विशाल ब्रह्माण्डमा फन्को लगाउँदै गरेकी | ||
+ | जीवनदायिनी धरती मातालाई | ||
+ | नयाँ जीवन दिन सकोस् | ||
+ | कहिल्यै जीवनशून्य नहोस् धरतीको काख | ||
+ | मानव–सभ्यता हाँसिरहोस् | ||
+ | मेरो धरती बाँचिरहोस् । | ||
+ | |||
+ | मेरो चेतना अनन्त निदाएपछि | ||
+ | मेरा आँखा सधैँका लागि बन्द भएपछि | ||
+ | चन्दनसदृश यहाँका वनस्पतिहरूमा | ||
+ | म सल्कँदै समाप्त भएपछि पनि | ||
+ | हावाले व्याकुल भएर उडाउँदै | ||
+ | यहीँको माटामा छर्नेछ मेरो भस्म | ||
+ | त्यसपछि पूर्णतया समाप्त हुनेछु म | ||
+ | जसरी समाप्त हुँदै आए असङ्ख्य मानिसहरू | ||
+ | म जसरी पुलकित हुन्थेँ वसन्तसँग | ||
+ | म जसरी आनन्दित हुन्थेँ मन्दाकिनीसँग | ||
+ | म जसरी हराउँथेँ शारदीय आकाशसँग | ||
+ | म जसरी पाल्थेँ अनन्त सपनाहरू | ||
+ | त्यसरी नै युगौँदेखि शताब्दियौँदेखि | ||
+ | बर्बर असभ्य युगदेखि | ||
+ | सभ्यताको शङ्खघोष भएसम्म | ||
+ | पाल्दै आए मानव–सन्ततिहरूले | ||
+ | म खरानी भएपछि पनि | ||
+ | खुल्दै जाऊन् ज्ञानका नयाँनयाँ क्षितिजहरू | ||
+ | युद्धको खडेरी भगाएर | ||
+ | फुल्दै जाऊन् शान्तिका सुन्दर फूलहरू | ||
+ | मेरो कामना फलोस्–फुलोस् | ||
+ | मानव–सभ्यता हाँसिरहोस् | ||
+ | मेरो धरती बाँचिरहोस् । | ||
</poem> | </poem> |
15:24, 9 अक्टूबर 2018 के समय का अवतरण
उर्लिरहेको विशाल सृष्टिसिन्धुको
एउटा सूक्ष्म बिन्दु म
सुन्दर फोको भएर हराऊँ लहर–तरङ्गहरूमा
या बिलाऊँ बालुवाका विराट् व्यूहहरूमा
म नरहे पनि
युगले मेरो कथा कहे पनि नकहे पनि
मानव–सभ्यता हाँसिरहोस्
मेरो धरती बाँचिरहोस् ।
तप्कँदै छन् निरन्तर आयुका थोपाहरू
एक दिन रिक्त हुनेछ अँजुली यो समयको
जीवनहीन हुनेछ, शुष्क हुनेछ
मृत्युको चिसो अँगालो फैलिएपछि
जीवनपुष्प ओइलिएपछि
त्यसपछिको समयमा
लाखौँ शताब्दीहरूमा, करोडौँ युगहरूमा
जीवनशून्य नहोस् धरतीको काख
मानव–सभ्यता हाँसिरहोस्
मेरो धरती बाँचिरहोस् ।
मेरो शरीर पञ्चभूतमा मिलेपछि पनि
चेतना कतै बाँकी रहेछ भने
सम्बन्ध–विच्छेद भएपछि पनि धरतीसँग
यसको पारि कुनै स्थान रहेछ भने
म त्यतै रहेर
यस धरतीको हरित–परिधानयुक्त वक्ष
सरसराउँदै बग्ने मधुर वासन्ती बतास
नीर–नीलिमायुक्त शारदीय आकाश
झर्ना र झिलहरू
खोल्सा र खोल्सीहरू
नदी, सागर र महासागरहरू
घना जङ्गलहरू, चिसा चिस्यान र ओसहरू
शीतल जून र झलमल घामहरू
कुनै–कुनै बिर्सनेछैन
नियालिरहनेछु हरेक क्षण प्रत्येक पल
उर्वर माटोलाई मेरो प्यारो धरतीलाई
फैलाएर आशिषका हत्केलाहरू
प्रवाहित गर्दै वाणीविहीन शब्दका पुञ्जहरू
मानव–सभ्यता हाँसिरहोस्
मेरो धरती बाँचिरहोस् ।
आओस् शिशिर समीरका
सृजनायुक्त कुचीहरू बोकेर
वसन्त छाओस् नवपल्लवहरू
धरतीभरिभरि पोखेर
सर्वत्र पुष्पित होस्, सुगन्धित होस् धरती
आतङ्कित नहोस् सृष्टि कहिल्यै
बूढो नहोस् यो तेजस्वी सूर्य
आलिङ्गनबद्ध रहोस् धरती सधैँ–सधैँ
ननजिकिऊन् क्षुद्र उल्काहरू
नदोहोरिऊन् अखण्ड प्रलय, महाप्रलय
र लामा हिमयुगका कथाहरू
भयावह विस्फोटनका व्यथाहरू
करोडौँकरोड युगका यात्राहरूमा पनि
सकिएर ऊर्जा
शीताङ्ग हुन नजाओस् धरती
मानव–सभ्यता हाँसिरहोस्
मेरो धरती बाँचिरहोस् ।
सौरमण्डलको उर्वर,
अनि मोहकस्वरूपा धरती
कहिल्यै चञ्चल नहोस्, जर्जर नहोस्
नअडियोस् एक निमेष पनि
अलिकति पनि विचलित भएमा धरती
आफ्नै कक्षमा घुमाइको क्रममा
अलिकति मात्र शिथिलता आए पनि
मानव–सभ्यता धराशयी हुन सक्छ
या सन्तुलन गुमाएमा
या बाटो फेरेमा
धुम्रकेतुसमान
बतासिँदै सौरमण्डलमा कुदेमा
या टकराएमा कुनै उल्कापिण्डसँग
र टुक्राटुक्रा भएर ब्रह्माण्डमा हराएमा
या घुम्दैफिर्दै सुरक्षित हुँदै
आपनै कक्षमा फेरि फिरेमा पनि
ध्वंस हुनेछ सृष्टि
मासिनेछ मानवजाति
पानीपानी अनि जीवनशून्य हुनेछ
फेरि पनि जीवन–योग्य हुन पुगेमा
हुन्छन् या हुँदैनन् मोनेराहरू ?
या फेरि विकसित हुन्छन हुँदैनन्
मोनेराहरू मानवजातिमा
फेरि पनि मुक्त हुन्छन् या हुँदैनन् हातहरू
त्रसित मनले हृदयबाटै कामना गर्दछु
मानवसृष्टि सधैँ सुरक्षित रहोस्
मानव–सभ्यता हाँसिरहोस्
मेरो धरती बाँचिरहोस् ।
कामना गर्छु
कतै हानिँदै नआओस् कुनै उल्का
र ध्वस्त नपारोस् धरती
कतै विचलित नहोस् आफ्नो कक्षबाट
र नकुदोस् धुम्रकेतु सदृश्य
होइन, यदि अवसान भयो भने धरतीको
साँच्चै नै अवसान भयो भने
मानवसृष्टिको
सबै कुरा सकिनेछ,
सबै कुरा व्यर्थ हुनेछ
न कुनै इतिहास हुनेछ
न स्वार्थ निन्दित हुनेछ
न बलिदान प्रशंसित हुनेछ
ब्रह्माण्डको यात्रारत धरतीमा
अनन्त–अनन्त समयसम्म
चलिरहोस् सुवासयुक्त मन्दमन्द बतास
फक्रिरहोस् मानव–सभ्यता
युगौँ–युगसम्म सुरम्य होस् सुरक्षित होस्
ब्यूँझदै असभ्यताको गाढा निद्राबाट
प्राप्त गरेका सुन्दरतम उपलब्धिहरू पुर्खाहरूले
ओजस्वी र समृद्ध इतिहास भावी पुस्ताका लागि
सुरक्षित रहोस्, संरक्षित होस्
यही आकाङ्क्षा फलोस्–फुलोस्
मेरो धरती बाँचिरहोस् ।
धेरै “म”हरू बितिसके
ओइलाएर झरिसके
यस विराट् सृष्टिमा
म रहनु या विघटित हुनुमा
छैन कुनै भिन्नता
युगको अनन्त यात्रामा
ती जो मरे जति मरे
ती जसले होमेर गए आफूलाई
बाँच्नुको मीठो मोह त्यागेर
परिवर्तनको महासमरमा,
अन्धकारको विरूद्ध, असभ्यताको विरूद्ध
उठाएर मुट्ठीमा धरतीको माटो
चुमेर गए मृत्युका कठोर हत्केलाहरू
नष्ट हुनुहुँदैन सौरमण्डल
ध्वस्त हुनुहुँदैन धर्ती
नष्ट हुनुहुँदैन मानव–सृष्टि
मानव–सभ्यता हाँसिरहोस्
मेरो धरती बाँचिरहोस् ।
ती जसले जीवनको बलिदान गरे
आत्मोत्सर्गको, अलौकिक साहसको
इतिहासहरू निर्माण गरे
ती जसले रमणीय
र उर्वरा बनाए धरतीलाई
ती
जसले सभ्य र सुन्दर बनाए समाजलाई
नसुकून् पसिना र रगतका धाराहरू
जो तिनले बगाए
नबिलाऊन् साहस र त्यागका
उदाहरणहरू
जो तिनले प्रस्तुत गरे
सबै कायम होस् सधैँ कायम होस्
मानवले उपलब्धिको शिखर चुमोस्
फैलँदै जाओस् सिन्धु मानव–सभ्यताको
मेरो धरती बाँचिरहोस् ।
युगौँयुगको यात्रा तय गरेर
विकासक्रमका लामा सिँढीहरू चढेर
मोनेराबाट विकसित भएको मानिस
अविश्वसनीय प्रगतिको मार्ग तय गरेर
वर्तमानसम्म आइपुगेको मानिस
मात्र केही सेकेन्ड अडिएमा पनि यो धरती
अनिष्ट हुनेछ, सर्वनाश हुनेछ, मानवशून्य हुनेछ
फेरि च्याहाँरच्याहाँर गर्दै
जन्मन्छन् वा जन्मँदैनन् मानवशिशुहरू
फेरि कति समय लाग्ने हो
जङ्गली अवस्थाबाट सम्यताको सँघार टेक्न
असभ्यताको, बर्बरताको निद्राबाट
ब्यूँझिएको मानिस
प्रगतिको शिखर चुम्दै जाओस्
मानव–सभ्यता हाँसिरहोस्
मेरो धरती बाँचिरहोस् ।
सधैँसधैँ सुरक्षित रहोस्
कष्टकर भोगाइबाट प्राप्त
सुन्दरतम उपलब्धिहरू
नमेटियोस् समृद्ध र ओजस्वी
इतिहास मानवजातिको
घृणाले थुक्ने कोही भएनन् भने
दुष्टहरूको नीचतालाई
श्रद्धाले झुक्ने कोही रहेनन् भने
वीरहरूको बलिदानलाई
के सार्थक भयो र पिएको विषका प्यालाहरू
के मतलब भयो स्विकारेको अग्निदाहलाई
नमेटियोस् मानिसको गौरवपूर्ण इतिहास
यही आकाङ्क्षा फलोस्–फुलोस्
मानव–सभ्यता हाँसिरहोस्
मेरो धरती बाँचिरहोस् ।
युद्धको घाउले क्षतविक्षत
नहोस् यसको छाती
सन्त्रास फैलाइरहेका
आणविक अस्त्रभण्डारहरू नष्ट होऊन्
अमरत्वको अमृत बर्साओस् मानिसले
बन्द होऊन् विनाशका नगराहरू
खुलून् प्रगतिका बाधक तगाराहरू
प्रेमको पर्याय बनोस् मानिस
किरणका तोरणहरू सधैँ फरफराइरहून्
न्यानो घाम ओर्लिरहोस् बस्तीबस्तीमा
नमेटियोस् कष्टले निर्माण गरेको
बलिदानले प्राप्त गरेको
मानव–सभ्यता र गौरवको इतिहास ।
धरती शीतल सुन्दर छहारी बनोस्
लडून् दम्भ अनि स्वार्थका भकारीहरू
मानिस प्रेमयुक्त बनोस्, भयमुक्त बनोस्
सबैसबै मानिसको मनमा बुद्ध बसून्
युद्धले क्षतविक्षत भएको छातीमा
शान्तिको अक्षय लिउन घसून्
मेरो आकाङ्क्षा फलोस्–फुलोस्
मानव–सभ्यता हाँसिरहोस्
मेरो धरती बाँचिरहोस् ।
बाँच्नु मीठो हुँदो रहेछ,
कुनै स्वादिष्ट व्यञ्जनभन्दा पनि
बाँच्नु आकर्षक हुँदो रहेछ
अमूल्य आभूषणभन्दा पनि
महाङ्कालको अँगालामा बाँधिएर
महानिद्रामा प्रवेश गर्नुअघि
बिहान मिरमिरेअघिको समयजस्तो
या बेलुका ठूलो साँझको बेलाजस्तो
मेरो चेतना जब निदाउँदै जानेछ
त्यो अस्पष्ट चेतनामा पनि
म कामना गर्नेछु
जोडेर जर्जर हत्केलाहरू
मानव–सभ्यता हाँसिरहोस्
मेरो धरती बाँचिरहोस् ।
अङ्कित हुन पुगून् या नपुगून्
मेरा पदचिह्नहरू शिलापत्रमा समयको
यो सृष्टिवृक्षबाट
म पहेलिँदै झरेपछि पनि
यो अथाह ब्रह्माण्डमा
घुमिरहेको मेरो धरतीमा
खुल्दै जाऊन्
ज्ञानका नयाँ–नयाँ क्षितिजहरू
फक्रँदै जाऊन्
शान्ति र स्नेहका फूलहरू
मानिस सधैँ पुलकित रहोस्
मानव–सभ्यता हाँसिरहोस्
मेरो धरती बाँचिरहोस् ।
करोडौँकरोड वर्षको यात्रापछि
जब ऊर्जाहीन अनि शीताङ्ग
हुँदै जानेछ मेरो धरती
मानिसले आर्जन गरेका चमत्कारहरूले
उसले प्राप्त गरेका
ज्ञानका विज्ञानका नयाँ आयामहरूले
विभिन्न ग्रहमा उपग्रहमा उसले गरेका
अन्वेषण र खोजहरूले
उसले प्राप्त गरेका
अविश्वसनीय उपलब्धिहरूले
ऊर्जा दिन सकोस्, तप्तता दिन सकोस्
कोमल–कोमल, स्निग्ध अनि शुभ्र
विशाल ब्रह्माण्डमा फन्को लगाउँदै गरेकी
जीवनदायिनी धरती मातालाई
नयाँ जीवन दिन सकोस्
कहिल्यै जीवनशून्य नहोस् धरतीको काख
मानव–सभ्यता हाँसिरहोस्
मेरो धरती बाँचिरहोस् ।
मेरो चेतना अनन्त निदाएपछि
मेरा आँखा सधैँका लागि बन्द भएपछि
चन्दनसदृश यहाँका वनस्पतिहरूमा
म सल्कँदै समाप्त भएपछि पनि
हावाले व्याकुल भएर उडाउँदै
यहीँको माटामा छर्नेछ मेरो भस्म
त्यसपछि पूर्णतया समाप्त हुनेछु म
जसरी समाप्त हुँदै आए असङ्ख्य मानिसहरू
म जसरी पुलकित हुन्थेँ वसन्तसँग
म जसरी आनन्दित हुन्थेँ मन्दाकिनीसँग
म जसरी हराउँथेँ शारदीय आकाशसँग
म जसरी पाल्थेँ अनन्त सपनाहरू
त्यसरी नै युगौँदेखि शताब्दियौँदेखि
बर्बर असभ्य युगदेखि
सभ्यताको शङ्खघोष भएसम्म
पाल्दै आए मानव–सन्ततिहरूले
म खरानी भएपछि पनि
खुल्दै जाऊन् ज्ञानका नयाँनयाँ क्षितिजहरू
युद्धको खडेरी भगाएर
फुल्दै जाऊन् शान्तिका सुन्दर फूलहरू
मेरो कामना फलोस्–फुलोस्
मानव–सभ्यता हाँसिरहोस्
मेरो धरती बाँचिरहोस् ।