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[[Category: ताँका]]
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1साँझ हो गईबन -बन भटकीभूखी व प्यासीरूपसी बंजारिनपिया ! कद्र न जानी।2दीप जलाएअँधियारे पथ मेंदिए उजाले,सदा हाथ जलाएपाए दिल पे छाले।3आँख लगी थीसुनी हूक प्रिया कीसपना टूटा,निंदिया ऐसी उड़ीउम्र भर न आई।4आहत मनअगरू गन्ध रोईमन्त्र सुबकेउदासी -भरा पर्वअश्रु का आचमन।5प्राण खपाएबरसों व्रत -पूजाकरके थकेआरती की थाली थीलात मार पटकी।6प्राणों में जो थाउसे पा नहीं सकेद्वार गैर केकभी जा नहीं सके,प्रारब्ध में यही लिखा।
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