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|रचनाकार=उमेश बहादुरपुरी
|अनुवादक=
|संग्रह=संगम / उमेश बहादुरपुरी
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<poem>
आगू चलऽ हे रुपइया,
सबसे आगु भागल जाहे
देखऽ समय के पहिया।।पहिया
वक्त के जे पहचानलक,
झुका देलक ऊ जमाना।जमाना
वक्त के बरबाद कइलक,
ऊ होगेल बेगाना।बेगाना
तूँ भी वक्त के पहचानऽ,
आझ न´् नञ् कहिया।। कहिया दुनिया....
वक्त जेक्कर साथ देलक,
त दुर्बल बनल दबंगा।दबंगा
वक्त जेकरा छोड़ देलक,
त राजा बन गेल रंक।रंक
वक्त के आगु सभे झुकल,
राजा हो या रहिया।।रहिया
बहादुरपुरी के कहना मानऽ,
वक्त के न´् भुलइहा।नञ् भुलइहावक्त से तूँ डरके रहिहा,वक्त के न´ अजमइहा।नञ् अजमइहाआबऽ मिलके गाबऽ गाना,वक्त के बनऽ सिपहिइया।।सिपहिइया
</poem>