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|रचनाकार=उमेश बहादुरपुरी
|अनुवादक=
|संग्रह=संगम / उमेश बहादुरपुरी
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हमरो इस्कुलवा भेजी देहीं मइया गे।गेहमरो जनम-दिन पर गइहें बधइया गे।।गेअब बेटा-बेटी में न´् नञ् फरक हइ मइया।मइयान´ नञ् होतउ तोइरो बेड़ा गरक मइया।मइयाबाबूजी से कही हें बनथिन कसइया गे।। गेहमरो ....बेटा यदि सूरज हउ त चंदा हम बनबउ।बनबउबेटा यदि जमुना हउ त गंगा हम बनबउ।बनबउकरी देवइ पापी-पाप के सफइया गे।। गे हमरो ....पढ़-लिख करके हम तो होशियार बनबउ।बनबउहर तरह के गुण हम तो अख्तियार करबउ।करबउकेकरो से पाछु न रहबइ हम दईया गे।। गेहमरो ....कल्पना चावला जइसन बनके देखइबउ।देखइबउलक्ष्मीबाई जइसन हम तन के देखइबउ।देखइबउहोवे न´् नञ् देबउ हम तोर जग हँसइया गे।। गेहमरो ....
इहाँ अनपढ़ रहके हम कउन काम करबइ
दुओ कुल के नाम तब तो बदनाम करबइ।करबइहमरा न´् दीहें जनम भर के सजइया गे।। गेहमरो ....तोर आँख के पुतरिया बन जइबउ मइया।मइयातोहर साँझ दुपहरिया बन जइबउ। जइबउ मइया ....कैसूँ करये कर दीहें पढ़ के उपइया गे। गेहमरो ....
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