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|रचनाकार=उमेश बहादुरपुरी
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|संग्रह=संगम / उमेश बहादुरपुरी
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लड़का आँख मारऽ हे अम्मा, ई लड़का आँख मारे।मारेधीरे से हम्मर कान में बोले देदऽ एगो चुम्मा।। चुम्माई ....हम कुँआरी भोली-भाली ई रस्ता से इंजान।इंजानजे भी देखे उहे पुकारे आ जा हम्मर जान।जानमन-मयूरा ऐसे नाचे जइसे छमाछम छम्मा।। छम्माई...दिल्ली के ई सपना दिखावे कभी कभी बनारस के।केकभी कहे आ जइहऽ पूनम आधीरात अमावस के।केकाहे हम्मर पाछु धरऽ हे बैरी सब ई निकम्मा।। निकम्माई ....कभी ई हमरा पाछू दिखावे कभी दिखावे आगू।आगूबड़ा रँगीला निकलल अप्पन ई त शहरी बाबू।बाबूहमरा ऊ बहियाँ में भरके बोले तमातम तम्मा। तम्मा ई ...कभी कहे आ जइहऽ रानी कभी कहे दिलजानी।दिलजानीदाव लगा के कखनो भी ऊ कर लेहे मनमानी।मनमानीबरसा प्यार के कर देहे ऊ तखने छमाछम छम्मा।। छम्माई ....
</poem>