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13:21, 5 अगस्त 2008 के समय का अवतरण
बीता वक़्त
बारिशों में घुल गया
ये वो बारिश नहीं थी
जिसे हम जानते हैं.
नीम के फूल झर गए
वीत रागी
वासंती हवाएँ लौट गईं
गुफ़ाओं को
पुल देखता रहा
कतार में
जल रही थीं चिताएँ
मैं खामोश
ये वो भाषा नहीं थी
जिसे हम जानते हैं.
धुंधली सलीबों पर
सब टंगे
हैं
सब मसीहा
अनुत्तरित प्रश्न मृत्यु के
अब और
ये वो भाषा नहीं थी
जिसे हम जानते हैं।