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"अंक में भरो / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

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प्राण बनूँ मैं
 
प्राण बनूँ मैं
 
तुझमें ही समाऊँ
 
तुझमें ही समाऊँ
 
कहीं न जाऊँ।
 
कहीं न जाऊँ।
2
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पीता रहूँगा
 
पीता रहूँगा
 
अधर चषक से
 
अधर चषक से
 
प्यास बुझाऊँ।
 
प्यास बुझाऊँ।
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तुम्हारे बिना
 
तुम्हारे बिना
 
कहाँ- कहाँ भटके
 
कहाँ- कहाँ भटके
 
प्राण अटके।
 
प्राण अटके।
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चैन न पाया
 
चैन न पाया
 
सागर तर आया
 
सागर तर आया
 
तुझमें डूबा।
 
तुझमें डूबा।
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कहाँ थे खोए
 
कहाँ थे खोए
 
तुम प्राण हमारे
 
तुम प्राण हमारे
 
बाट निहारें।
 
बाट निहारें।
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उड़के आऊँ
 
उड़के आऊँ
 
गले लगा तुझको
 
गले लगा तुझको
 
जीवन पाऊँ।
 
जीवन पाऊँ।
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दर्द तुम्हारा
 
दर्द तुम्हारा
 
सुधा समझ पी लूँ
 
सुधा समझ पी लूँ
 
दो पल जी लूँ।
 
दो पल जी लूँ।
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मेरी योगिनी!
 
मेरी योगिनी!
 
क्यों बनी वियोगिनी
 
क्यों बनी वियोगिनी
 
कम्पन तुम्हीं  
 
कम्पन तुम्हीं  
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अंक में ले लो
 
अंक में ले लो
 
हरो सन्ताप सारे
 
हरो सन्ताप सारे
 
हे प्राण प्यारे।
 
हे प्राण प्यारे।
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सँभालो मुझे
 
सँभालो मुझे
 
ओ मन- परिणीता
 
ओ मन- परिणीता
 
अंक में भरो ।
 
अंक में भरो ।
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कर्मयोगिनी
 
कर्मयोगिनी
 
अच्छे  ही कर्म करे
 
अच्छे  ही कर्म करे
 
दु:ख ही भरे ।
 
दु:ख ही भरे ।
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क्या कर्म-फल?
 
क्या कर्म-फल?
 
शुभ सोचे व करे
 
शुभ सोचे व करे
 
नरक भरे?
 
नरक भरे?
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तापसी जगी
 
तापसी जगी
 
नींद हुई बैरन
 
नींद हुई बैरन

23:02, 5 मई 2019 के समय का अवतरण


21
प्राण बनूँ मैं
तुझमें ही समाऊँ
कहीं न जाऊँ।
22
पीता रहूँगा
अधर चषक से
प्यास बुझाऊँ।
23
तुम्हारे बिना
कहाँ- कहाँ भटके
प्राण अटके।
24
चैन न पाया
सागर तर आया
तुझमें डूबा।
25
कहाँ थे खोए
तुम प्राण हमारे
बाट निहारें।
26
उड़के आऊँ
गले लगा तुझको
जीवन पाऊँ।
27
दर्द तुम्हारा
सुधा समझ पी लूँ
दो पल जी लूँ।
28
मेरी योगिनी!
क्यों बनी वियोगिनी
कम्पन तुम्हीं
29
अंक में ले लो
हरो सन्ताप सारे
हे प्राण प्यारे।
 30
सँभालो मुझे
ओ मन- परिणीता
अंक में भरो ।
31
कर्मयोगिनी
अच्छे ही कर्म करे
दु:ख ही भरे ।
32
क्या कर्म-फल?
शुभ सोचे व करे
नरक भरे?
33
तापसी जगी
नींद हुई बैरन
कोसों है दूर्।
-०-