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"जीवन बस अपना होता है / मानोशी" के अवतरणों में अंतर

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जीवन बस अपना होता है,
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तोड़ कर सब वर्जनाएँ
अपने ही सँग जीना सीखो॥
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स्वप्न सारे जीत लेंगे
 +
एक दिन हम ।।
  
जब-जब आशा के पौधोँ को
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राह में जो धूल की
सींचा मैँने बडे जतन से
+
आँधी उड़ी,
फूल खिलेँगे, मोती देँगे,
+
क्या पता क्यों
सपना बोया बहुत लगन से,
+
समय की धारा मुड़ी,
माली ने निष्ठुरता से यूँ
+
मंज़िलों के रास्ते भी
अधखिलती कलियों को काटा
+
थे ख़फ़ा,  
रँगहीन था रक्त बहा जो
+
साथ में फिर और
लेकिन क्या परवाह किसी को॥
+
कठिनाई जुड़ी,
 +
पर क्षितिज के पार खिलती
 +
रोशनी को  
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भी वरेंगे एक दिन हम ।।
  
नई-पुरानी छोटी-छोटी
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देखते ही देखते
बूँदों से कुछ बादल जोडे,
+
युग बीतता,
कहीं सितारा, कहीं चँद्रमा,
+
बूँद-बूँदों समय का घट
झिलमिल रातें, सपने ओढ़े ,
+
रीतता,  
सोचा छू लूँ, पँख लगा कर,
+
काट कर सब बंध
ऐसी आँधी चली अचानक
+
सारी कामना,
सावन बरसा पर तरसा कर
+
लक्ष्य हो ध्रुव जब
फिर से प्यासा रखा नदी को॥
+
तभी मन जीतता,
 +
त्याग कर झूठे सहारे,
 +
आवरण तम का हरेंगे
 +
एक दिन हम ।।
  
हम हैं जो बुनते अनदेखे
+
ज़िंदगी की राह में
सब आशंकाओं के जाले,
+
ठोकर मिले,
हम ही होते शत्रु स्वयं के
+
जो रहे मन में वही
अपने से ही चलते चालें,
+
मन को छिले,
तेज़ धार में समझबूझ कर
+
लड़खड़ाए थे क़दम
दे देते पतवार नाव की,
+
इक पल मगर,
गहरे जल के हिचकोलों में
+
फिर चले हँस कर  
दोषी ठहराते माझी को॥
+
मिटा कर हर गिले,
 
+
रात कितनी हो अंधेरी
जीवन बस अपना होता है,
+
सूर्य रथ पर भी चढ़ेंगे
अपने ही सँग जीना सीखो॥
+
एक दिन हम ।।
 
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09:26, 26 अगस्त 2019 का अवतरण

तोड़ कर सब वर्जनाएँ
स्वप्न सारे जीत लेंगे
एक दिन हम ।।

राह में जो धूल की
आँधी उड़ी,
क्या पता क्यों
समय की धारा मुड़ी,
मंज़िलों के रास्ते भी
थे ख़फ़ा,
साथ में फिर और
कठिनाई जुड़ी,
पर क्षितिज के पार खिलती
रोशनी को
भी वरेंगे एक दिन हम ।।

देखते ही देखते
युग बीतता,
बूँद-बूँदों समय का घट
रीतता,
काट कर सब बंध
सारी कामना,
लक्ष्य हो ध्रुव जब
तभी मन जीतता,
त्याग कर झूठे सहारे,
आवरण तम का हरेंगे
एक दिन हम ।।

ज़िंदगी की राह में
ठोकर मिले,
जो रहे मन में वही
मन को छिले,
लड़खड़ाए थे क़दम
इक पल मगर,
फिर चले हँस कर
मिटा कर हर गिले,
रात कितनी हो अंधेरी
सूर्य रथ पर भी चढ़ेंगे
एक दिन हम ।।