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अनुराधा महापात्र का जन्म पश्चिमी बंगाल के मेदिनीपुर ज़िले के एक बेहद पिछड़े हुए गाँव नन्दग्राम में हुआ था। उनके पिता कपड़ों की सिलाई करते थे और कपड़े बेचा करते थे। नन्दीग्राम सीतानन्द स्कूल में शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने बी०ए० किया। इसके बाद वे 1978 में कोलकाता आ गईं और 1981 में उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय से बँगला साहित्य में एम०ए० किया। अनुराधा अपने परिवार की वह पहली स्त्री थीं, जिसने उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। | अनुराधा महापात्र का जन्म पश्चिमी बंगाल के मेदिनीपुर ज़िले के एक बेहद पिछड़े हुए गाँव नन्दग्राम में हुआ था। उनके पिता कपड़ों की सिलाई करते थे और कपड़े बेचा करते थे। नन्दीग्राम सीतानन्द स्कूल में शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने बी०ए० किया। इसके बाद वे 1978 में कोलकाता आ गईं और 1981 में उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय से बँगला साहित्य में एम०ए० किया। अनुराधा अपने परिवार की वह पहली स्त्री थीं, जिसने उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। |
09:34, 10 फ़रवरी 2020 का अवतरण
अनुराधा महापात्र का जन्म पश्चिमी बंगाल के मेदिनीपुर ज़िले के एक बेहद पिछड़े हुए गाँव नन्दग्राम में हुआ था। उनके पिता कपड़ों की सिलाई करते थे और कपड़े बेचा करते थे। नन्दीग्राम सीतानन्द स्कूल में शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने बी०ए० किया। इसके बाद वे 1978 में कोलकाता आ गईं और 1981 में उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय से बँगला साहित्य में एम०ए० किया। अनुराधा अपने परिवार की वह पहली स्त्री थीं, जिसने उच्च शिक्षा प्राप्त की थी।
कोलकाता में अनुराधा एक प्रकाशक के लिए प्रूफ़रीडिंग का काम करने लगीं। इसके साथ-साथ वे मध्यकालीन बंगला से आधुनिक बंगला भाषा में ऐतिहासिक दस्तावेज़ों के अनुवाद का काम भी करती थीं। इसके बाद वे कोलकाता-2000 नामक एक पत्रिका में उपसम्पादक की नौकरी करने लगीं। फिर 1985 से 1990 तक उन्होंने उन्नयन नामक एक समाजसेवी संगठन में काम किया, जो राजनीतिक और आर्थिक शरणार्थियों को वैधानिक सेवाएँ उपलब्ध कराता था और ग़रीबों को नौकरियाँ दिलाने व घर देने का काम करता था। उन्नयन की तरफ़ से उन्होंने इन ग़रीब और पिछड़े हुए लोगों की संस्कृति और सामाजिक-आर्थिक स्थितियों के बारे में पत्र-पत्रिकाओं में अनेक लेख लिखे। 1990 तक उन्नयन अनेक आर्थिक और कानूनी समस्याओं से घिर गया था, इसलिए वहाँ से अनुराधा महापात्र और उनके अनेक सहकर्मियों को निकाल दिया गया।
आजकल अनुराधा महापात्र कोलकाता की पिछड़ी बस्तियों, झुग्गी-झोपड़ियों और स्लम उलाकों में समाज सेवा का काम करती हैं और आजीविका के लिए पत्र-पत्रिकाओं में लेखादि लिखती हैं तथा पुस्तकों का सम्पादन करती हैं। उनके बड़े भाई का परिवार, उनके छोटे भाई-बहन अब उन्हीं के साथ दक्षिणी कोलकाता की सन्तोषपुर कॉलोनी में रहते हैं। यह इलाका बांग्लादेश से भारत आए हिन्दू शरणार्थियों का इलाका माना जाता है। कोलकाता को मध्यवर्गीय और उच्चवर्गीय बँगला लेखकों का गढ़ माना जाता है, जहाँ बहुत कम लेखक ऐसे हैं, जो श्रमिक वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं।
अनुराधा महापात्र की कविताओं में उनका गाँव बोलता है और जिस श्रमिक वर्ग का वे प्रतिनिधित्व करती हैं, वह श्रमिक वर्ग बार-बार उभरकर सामने आता है। उनका पहला संग्रह चैपहुल्सलुप (फूलों का ढेर) 1983 मेम प्रकाशित हुआ था। दूसरा संग्रह अधिभास मणिकर्णिका (वैवाहिक उपवास का शोक) 1987 में छपा। फिर उनकी तीसरी किताब थी — अम्मुकुलेर गन्ध (आम की ख़ुशबू)। 1990 में प्रकाशित इस किताब में उनकी आत्मकथात्मक कविताएँ और आत्मकथात्मक गद्य था। बंगला भाषा की तमाम साहित्यिक-सांस्कृतिक पत्रिकाओं में उनकी कविताएँ छपती रहती हैं। आजकल बड़ी संख्या में प्रकाशित होने वाली ’देश’ जैसी व्यावसायिक पत्रिकाओं में भी उनकी कविताएँ प्रकाशित होती हैं। हाल ही में कैरोलिन राइट ने परामिता बैनर्जी और ज्योतिमय दत्त के साथ अनुराधा महापात्र की कविताओं का एक संग्रह एनअदर स्प्रिंग डार्कनेस’ के नाम से अँग्रेज़ी में अनुवाद करके अमरीका में प्रकाशित किया है।