भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ख़तरे / वेणु गोपाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 10: पंक्ति 10:
 
अपने पार भविष्य दिखाते हुए।
 
अपने पार भविष्य दिखाते हुए।
  
जैसे छोटे से गुदाज बदन वाली बच्ची
+
जैसे छोटे से गुदाज़ बदन वाली बच्ची
 
किसी जंगली जानवर का मुखौटा लगाए
 
किसी जंगली जानवर का मुखौटा लगाए
 
धम्म से आ कूदे हमारे आगे
 
धम्म से आ कूदे हमारे आगे

17:00, 6 सितम्बर 2008 के समय का अवतरण


ख़तरे पारदर्शी होते हैं।
ख़ूबसूरत।
अपने पार भविष्य दिखाते हुए।

जैसे छोटे से गुदाज़ बदन वाली बच्ची
किसी जंगली जानवर का मुखौटा लगाए
धम्म से आ कूदे हमारे आगे
और हम डरें नहीं। बल्कि देख लें
उसके बचपन के पार
एक जवान खुशी

और गोद में उठा लें उसे।
ऐसे ही कुछ होते हैं ख़तरे।
अगर डरें तो ख़तरे और अगर
नहीं तो भविष्य दिखाते
रंगीन पारदर्शी शीशे के टुकड़े।

(रचनाकाल :24.10.1972)