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मेरा ख़्वाब है, मुझको तेरे साथ चलना है।
राह में मुहब्बत की गिरना और सँभलना है।
इल्म हर किसी को है, दिन अभी तो ढलना है,
शब में चाँद-तारों को बाद में निकलना है।
 
कोई भी नहीं चारा दूसरा सिवा इसके,
अपनी-अपनी गलती पर सबको हाथ मलना है।
 
अपना दर्द साहिल पर आके लिख रहीं लहरें,
किस लिए कहें इनका बेग़रज़ मचलना है।
 
‘नूर’ मेरे जैसों के कामयाब होने पर,
अपना क्या, पराया क्या, हर किसी का जलना है।
</poem>
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