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"रोटी / हेमंत जोशी" के अवतरणों में अंतर

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                                                                                                                                 मार्क्स को याद करते हुए
  
 
याद रखें कि मेरा पेट भरा है
 
याद रखें कि मेरा पेट भरा है

23:26, 6 मई 2020 का अवतरण

                                                                                                                               मार्क्स को याद करते हुए

याद रखें कि मेरा पेट भरा है कहीं कोई बंजर नहीं, हर तरफ हरा-भरा है पेट को हमेशा-हमेशा रखने के लिए भरा-पूरा जंगल से शहरों और शहरों से महानगरों तक फिरा में मारा-मारा।

जानवरों के शिकार से आदमखोरी से भी पेट भरा है। जब दिखे बंजर मैदान बदला उनको खलिहानों में और एक दिन ईजाद की रोटी रोटी ज्वार की रोटी बाजरे की रोटी मडुवे की रोटी मक्के की और गेहूँ की रोटी गोल-गोल जैसे पृथ्वी रोटी चाँद हो जैसे रोटी सूरज की छटाओं सी अलग-अलग रंगों की अलग-अलग स्वाद सी।

जबसे बनाई रोटी पेट भरता नहीं केवल बोटी से दीगर है बात कि राजे-रजवाड़े और उनके दरबारी सदा से खाते रहे हैं छप्पन भोग पर हमने तो रोटी ही खाई रोटी की ही गाई दो रोटी पेट पाल दाल रोटी खाओ, प्रभु के गुन गाओ पता नहीं प्रभु कौन है अब रोटी पर इतना सोचा नया अर्थ ही दे डाला रोटी तब नहीं रह गई केवल रोटी हो गई रोज़ी-रोटी हो गई मजबूरी इतनी हाय पापी पेट क्या न कराये चोरी-चकारी, हत्याएं, हमले, प्रपंच जेब काटना, बाल काटना पेड़ काटना, कुर्सी बनाना कपड़े बनाना, पढ़ना-पढ़ाना बहुत विकास किया भाई नई-नई चीज़ें बनाईं बैलगाड़ी, घोड़ागाड़ी कारें, बसें, रेल की सवारी ढ़ेरों नशे, ढ़ेरों बीमारी ढ़ेरों दवाएँ औऱ महामारी विकास ही विकास चहुं ओर नए-नए हथियार टैंक, युद्धपोत, विमान अमीरी और ग़रीबी ऐय्याशी और मज़दूरी खाए-अघाए लोग और भुखमरी पता ही नहीं चला कब सत्ता के दलालों ने लोकतंत्र के नाम पर रोटी की बहस को बदल दिया विकास की बहस में ज्ञान-विज्ञान-अनुसंधान और प्रबंधन में।

आज जब कोई भूखा यहाँ आदमी कहना ज़रूरी नहीं क्योंकी भूख को स्त्रीलिंग और पुल्लिंग में बाँटना ठीक नहीं जब कोई भूखा कहता है आज रोटी दो, मुझे रोटी दो तो वह उससे पूछते हैं जीने का मतलब क्या केवल रोटी होता है? देखो, देखो हमने विमान बनाए हैं जिनसे हम पुष्प वर्षा करते हैं ठीक उसी तरह जैसे धरा पर ईश्वर के अवतरण पर करते थे देवता पुष्प वर्षा करते हैं हम लोगों पर जो जाते हैं सावन में गंगाजल लेने लोगों पर जो करते हैं सेवा तुम्हें महामारी से बचाने के लिए।

तुम्हें, मूर्ख तुम्हें बचाने के लिए और तुम्हें रोटी की पड़ी है जब जीवन ही नहीं होगा तो रोटी का क्या करेगा तू बचेगा भी या नहीं, पता नहीं हम सुरक्षित रहेंगे और हमारे खजाने भरे रहेंगे हम रोटी के बिना ज़िंदा रहते हैं वह और बात है कि हम जीते जी मरे हुए हैं तू जिसे कहता है रोज़ी-रोटी वह रोज़ की रोटी है मिले तो सही न मिले तो खोटी है रोटी नहीं तेरी किस्मत

जा अब हमें पुष्प वर्षा करने दे।


5 मई 2020