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एक-एक तार में तुम झंकार उठे हो-
सच बतलाना मेरे स्वर्णिम संगीत
तुम कब से मुझ में छिपे सो रहे थे।थे?
सुनो, मैं अक्सर अपने सारे शरीर को-
तुम मेरे जिस्म के एक-एक तार से
झंकार उठोगे
सुनो ! सच बतलाना मेरे स्वर्णिम संगीत
इस क्षण की प्रतीक्षा में तुम
कब से मुझ में छिपे सो रहे थे?</poem>
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