भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कमरा / मंगलेश डबराल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=हम जो देखते हैं / मंगलेश डबराल
 
|संग्रह=हम जो देखते हैं / मंगलेश डबराल
 
}}
 
}}
 +
{{KKCatKavita}}
 +
{{KKVID|v=e26UYt415Uk}}
 
<poem>
 
<poem>
 
इस कमरे में सपने आते हैं
 
इस कमरे में सपने आते हैं

19:32, 10 जून 2020 के समय का अवतरण

यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें

इस कमरे में सपने आते हैं
आदमी पहुँच जाता है
दस या बारह साल की उम्र में

यहाँ फ़र्श पर बारिश गिरती है
सोये हुओं पर बादल मंडराते हैं

रोज़ एक पहाड़ धीरे-धीरे
इस पर टूटता है
एक जंगल यहाँ अपने पत्ते गिराता है
एक नदी यहाँ का कुछ सामान
अपने साथ बहाकर ले जाती है

यहाँ देवता और मनुष्य दिखते हैं
नंगे पैर
फटे कपड़ों में घूमते
साथ-साथ घर छोड़ने की सोचते

(1989 में रचित)