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"करघा / रामधारी सिंह "दिनकर"" के अवतरणों में अंतर

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इतनी जगहों पर मिलती है<br>
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पहचानता है।
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बेवकूफ़ियों का मेला है।<br><br>
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बुनकर इसे खूब जानता है।
  
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और दुनिया उलझे सूतों का जाल है।<br>
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क्या रहस्य है,<br>
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बुनकर इसे खूब जानता है।<br>
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’हारे को हरिनाम’ से
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12:40, 15 जून 2020 का अवतरण

हर ज़िन्दगी कहीं न कहीं
दूसरी ज़िन्दगी से टकराती है।
हर ज़िन्दगी किसी न किसी
ज़िन्दगी से मिल कर एक हो जाती है ।

ज़िन्दगी ज़िन्दगी से
इतनी जगहों पर मिलती है
कि हम कुछ समझ नहीं पाते
और कह बैठते हैं यह भारी झमेला है।
संसार संसार नहीं,
बेवकूफ़ियों का मेला है।

हर ज़िन्दगी एक सूत है
और दुनिया उलझे सूतों का जाल है।
इस उलझन का सुलझाना
हमारे लिये मुहाल है।

मगर जो बुनकर करघे पर बैठा है,
वह हर सूत की किस्मत को
पहचानता है।
सूत के टेढ़े या सीधे चलने का
क्या रहस्य है,
बुनकर इसे खूब जानता है।

’हारे को हरिनाम’ संग्रह से