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लड़ने की जब से ठान ली सच बात के लिए
सौ आ़फतों आफ़तों का साथ है दिन-रात के लिए
अब है फ़जूल वक़्त कहाँ आदमी के पास
उसने उसे फिज़ूल समझकर उड़ा दिया
बरबाद बर्बाद हो चला हूँ मैं जिस बात के लिए
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