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"गरल घोलते रह गये / ओम नीरव" के अवतरणों में अंतर

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अर्थ-स्वामी खड़े मोलते रह गये।  
 
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अश्रु उनके न पोछे किसी ने कभी,  
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व्यर्थ ही लोग जय बोलते रह गये।  
 
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मापनी–गालगा गालगा-गालगा गालगा  
 
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11:34, 20 जून 2020 के समय का अवतरण

स्नेह को स्वर्ण से तोलते रह गये।
लोग यों ही गरल घोलते रह गये।

प्रीति-मीरा बिकी तो बिकी मोल बिन,
अर्थ-स्वामी खड़े मोलते रह गये।

अश्रु उनके न पोंछे किसी ने कभी,
व्यर्थ ही लोग जय बोलते रह गये।

सौम्यता-सी कली ने न खोले अधर,
मनचलों-से भ्रमर डोलते रह गये।

पोथियों में मिला सच कहीं भी नहीं,
पृष्ठ के पृष्ठ हम खोलते रह गये।


आधार छन्द–वाचिक स्रग्विणी
मापनी–गालगा गालगा-गालगा गालगा