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"घर-एक / श्रीनिवास श्रीकांत" के अवतरणों में अंतर

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{{KKRachna
 
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|srinivas srikant
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|रचनाकार=श्रीनिवास श्रीकांत
|Ghar ek yatra hai / srinivas srikant
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|संग्रह=घर एक यात्रा है / श्रीनिवास श्रीकांत
 
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Ghar ek kitab hai
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घर एक  किताब है
pechida guthiyon wali
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पेचीदा गुत्थियों वाली
ek dusare se jude anpadhe
+
ए दूसरे से जुड़े अनपढ़े
kathavrit hain isme kalamband
+
कथावृत्त हैं इसमें कलमबन्द
her vrit hai ek jild
+
हर वृत्त है एक जिल्द
per jitana sarokar
+
पर जितना सरोकार
utana hi jana pehchana
+
उतना ही जाना पहचाना
padha guna
+
पढ़ा गुना
baki sab rehasaya
+
बाकी सब रहस्य
talhin
+
तलहीन
  
Ghar hai dehon se meryadit
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घर है देहों से मर्यादित
Gopniya chetna ka
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गोपनीय चेतना का
ek bada angaha sansar
+
एक बड़ा अनगाहा संसार
Ghar ek boana jangal
+
apne paon chalata
+
  
usmen gujar jati hain
+
घर है एक बौना जंगल
pidhiyon ki pidhiyan
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अपने पाँवों चलता
sadiyon ki sadiyan
+
nekiyan
+
bandiyan
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sabhi.
+
  
samaya ki nadi ka
+
उसमें से गुजर जाती हैं
udagam sathal hai ghar
+
पीढिय़ों की पीढिय़ाँ
 +
सदियों की सदियाँ
 +
नेकियाँ
 +
बदियाँ
 +
सभी।
  
agar Ghar Ghar nahein
+
समय की नदी का
to wah dher hai
+
उद्ïगम स्थल है घर
jhuthkhoron ke ander ka der
+
waqt ke panchi
+
tuta hua per bhi hai ghar
+
sanate niket mein
+
gunjati rehati
+
fadfadahat jisaki
+
barason
+
  
Ghar ek yatra hai
+
अगर घर घर नहीं
Dharamyatra hai
+
तो वह डर है
anant ki aor
+
झूठखोरों के अन्दर का डर
 +
वक्त के पंछी
 +
टूटा हुआ पर भी है घर
 +
सन्नाटे निकेत में
 +
गूँजती रहती
 +
फडफ़ड़ाहट जिसकी
 +
बरसों
  
registan mein
+
घर एक  यात्रा है
chalata hua kafila hai Ghar
+
एक  धर्मयात्रा
barfani manjer mein
+
अनन्त की ओर
hai wah
+
ek dhruviya kabila
+
apane mein akela
+
apane mein sampurn
+
  
ek sath kai sajon mein bajata
+
रेगिस्तान में
samuhgan hai Ghar
+
चलता हुआ काफिला है घर
jise gata hai darakhat
+
बर्फानी मंजर में
aoor usaki tehniyan
+
है वह
 +
एक ध्रुवीय कबीला
 +
अपने में अकेला
 +
अपने में सम्पूर्ण
  
kabilon ka bhagwan hai
+
एक  साथ कई साजों में बजता
ghar
+
समूहगान है घर
satvikon ka
+
जिसे गाता है दरख्त
puja sathal
+
और उसकी टहनियाँ
asatvikon ka
+
musafirkhana
+
  
kabhi-kabhi besabab
+
कबीलों का भगवान है
lo mein jalata perwana bhi hai ghar
+
घर
 +
सात्विकों का
 +
पूजास्थल
 +
असात्विकों का
 +
मुसाफिरखाना
  
Ghar na aakaash hai
+
कभी-कभी बेसबब
na patal
+
लौ में जलता परवाना भी है घर
wah hai adher
+
 
per ant mein
+
घर न आकाश है
ghar bas ghar hai
+
न पाताल
itana bher.
+
वह है अधर
 +
पर अन्त में
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घर बस घर है
 +
इतना भर ।
 
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Mukesh Negi
 

12:57, 20 जून 2020 का अवतरण

घर एक किताब है
पेचीदा गुत्थियों वाली
ए दूसरे से जुड़े अनपढ़े
कथावृत्त हैं इसमें कलमबन्द
हर वृत्त है एक जिल्द
पर जितना सरोकार
उतना ही जाना पहचाना
पढ़ा गुना
बाकी सब रहस्य
तलहीन

घर है देहों से मर्यादित
गोपनीय चेतना का
एक बड़ा अनगाहा संसार

घर है एक बौना जंगल
अपने पाँवों चलता

उसमें से गुजर जाती हैं
पीढिय़ों की पीढिय़ाँ
सदियों की सदियाँ
नेकियाँ
बदियाँ
सभी।

समय की नदी का
उद्ïगम स्थल है घर

अगर घर घर नहीं
तो वह डर है
झूठखोरों के अन्दर का डर
वक्त के पंछी
टूटा हुआ पर भी है घर
सन्नाटे निकेत में
गूँजती रहती
फडफ़ड़ाहट जिसकी
बरसों

घर एक यात्रा है
एक धर्मयात्रा
अनन्त की ओर

रेगिस्तान में
चलता हुआ काफिला है घर
बर्फानी मंजर में
है वह
एक ध्रुवीय कबीला
अपने में अकेला
अपने में सम्पूर्ण

एक साथ कई साजों में बजता
समूहगान है घर
जिसे गाता है दरख्त
और उसकी टहनियाँ

कबीलों का भगवान है
घर
सात्विकों का
पूजास्थल
असात्विकों का
मुसाफिरखाना

कभी-कभी बेसबब
लौ में जलता परवाना भी है घर

घर न आकाश है
न पाताल
वह है अधर
पर अन्त में
घर बस घर है
इतना भर ।