Changes

|भावार्थ=कवि सुमित्रानंदन पंत जी कहते हैं कि भारत माता ग्रामवासिनी है अर्थात भारत माता कि आत्मा गाँव में निवास करती है। भारतीय किसान खेतों में काम करते हैं। केवल किसान ही नहीं बल्कि पूरा परिवार खुले आकाश के नीचे प्रातः काल से संध्या तक खेतों और मैदानों में खेती तथा पशु चारण कार्य में लगे होते हैं। फिर भी वह बहुत ही गरीब और पिछड़े हुए हैं। धूल भरा मैला-सा आंचल उनकी ग़रीबी का चिह्न है। उनका चेहरा उदास आंसू से भरी आंखें मूलतः दुख की प्रतिमा है। कवि की कल्पना है भारत माता अपनी संतानों को दुखी देखकर आंसू बहाती है।
 गंगा यमुना में भारत माता के आंसू जल प्रवाह के रूप में बह रहे हैं। आगे की पंक्तियों में कभी कहते हैं कि भारतमाता बहुत दुखी है-उनको इस बात का अधिक दुख है कि महानगरों में विकास कार्य हुआ है यहाँ की चमक-दमक और आर्थिक खुशहाली की तुलना में गाँव की बदहाली चिंता का विषय बनी हुई है। गाँव की 30 करोड़ से अधिक जनता को नग्न तन, भूखा, अभावग्रस्त और शोषित देखकर भारत माता दुखी और उदास है क्योंकि गाँव में निवासी असभ्य अशिक्षित होने के कारण पिछड़े हुए हैं। अधिकतर लोग तो ऐसे भी हैं जिनके पास रहने का निवास स्थान नहीं है। वृक्षों के नीचे निवास करते हैं। इसलिए कवि बहुत दुखी हैं भारत माता बहुत दुखी है।|चित्र=Jyoti-kumari-kavitakosh-200px.jpg
|लेखक=ज्योति कुमारी
|योग्यता=सहायक शिक्षिका (हिंदी)
}}