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हाथ / केदारनाथ सिंह

No change in size, 08:22, 7 जुलाई 2020
अपने हाथ में लेते हुए मैंने सोचा
दुनिया को
हाथ की तरह गर्म नर्म और सुंदर होना चाहिए.
</poem>
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