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"हंस-मानस की नर्तकी / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर
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मैं दु:साहस नहीं करूँगा | मैं दु:साहस नहीं करूँगा | ||
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तुमने | तुमने | ||
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अपने अंगों से | अपने अंगों से | ||
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जो गीत लिखा है- | जो गीत लिखा है- | ||
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विगलित लयमय, | विगलित लयमय, | ||
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सरस रंगमय | सरस रंगमय | ||
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छंद-गंधमय- | छंद-गंधमय- | ||
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उसके आगे | उसके आगे | ||
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अर्थ-समर्थ बहुत होकर भी- | अर्थ-समर्थ बहुत होकर भी- | ||
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मेरी क्षमता की सीमा में- | मेरी क्षमता की सीमा में- | ||
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एक नई कविता-सा केवल | एक नई कविता-सा केवल | ||
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जान पड़ेगा- | जान पड़ेगा- | ||
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लय पवहीन, | लय पवहीन, | ||
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निचोड़ा, | निचोड़ा, | ||
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सूखा, भेड़ा। | सूखा, भेड़ा। | ||
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ओ माखन-सी | ओ माखन-सी | ||
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मानस हंसिनि, | मानस हंसिनि, | ||
− | + | गीत तुम्हारा | |
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जब मैं फिर सुनाना चाहूँगा, | जब मैं फिर सुनाना चाहूँगा, | ||
− | + | अपने चिर-परिचित शब्दों से | |
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नहीं सहरा मैं मागूँगा। | नहीं सहरा मैं मागूँगा। | ||
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कान रूँध लूँगा, | कान रूँध लूँगा, | ||
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मुख अपना बंद करूँगा, | मुख अपना बंद करूँगा, | ||
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पलकों में पर लगा | पलकों में पर लगा | ||
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समय-अवकाश पार कर | समय-अवकाश पार कर | ||
− | + | क्षीर-सरोवर तीर तुम्हारे | |
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उतर पड़ूँगा, | उतर पड़ूँगा, | ||
− | + | तुम्हे निहारूँगा, | |
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− | + | ||
नयनों से | नयनों से | ||
− | + | जल-मुक्ताहल तरल भड़ूँगा! | |
− | जल- | + | </poem> |
22:47, 28 जुलाई 2020 के समय का अवतरण
शब्द-बद्ध
तुमको करने का
मैं दु:साहस नहीं करूँगा
तुमने
अपने अंगों से
जो गीत लिखा है-
विगलित लयमय,
नीरव स्वरमय
सरस रंगमय
छंद-गंधमय-
उसके आगे
मेरे शब्दों का संयोजन-
अर्थ-समर्थ बहुत होकर भी-
मेरी क्षमता की सीमा में-
एक नई कविता-सा केवल
जान पड़ेगा-
लय पवहीन,
रसरिक्त,
निचोड़ा,
सूखा, भेड़ा।
ओ माखन-सी
मानस हंसिनि,
गीत तुम्हारा
जब मैं फिर सुनाना चाहूँगा,
अपने चिर-परिचित शब्दों से
नहीं सहरा मैं मागूँगा।
कान रूँध लूँगा,
मुख अपना बंद करूँगा,
पलकों में पर लगा
समय-अवकाश पार कर
क्षीर-सरोवर तीर तुम्हारे
उतर पड़ूँगा,
तुम्हे निहारूँगा,
नयनों से
जल-मुक्ताहल तरल भड़ूँगा!