भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ह्रदय / अजित कुमार" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अजित कुमार |संग्रह=अंकित होने दो / अजित कुमार }} अ...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 29: | पंक्ति 29: | ||
जिसने क्षत-विक्षत घावों को भरा और | जिसने क्षत-विक्षत घावों को भरा और | ||
− | टूटे भावों को जोड़ा । | + | टूटे भावों को जोड़ा । |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + |
01:37, 21 सितम्बर 2008 का अवतरण
अपने सरस, उदार ह्र्दय को
जितना भी सम्भव था , उतना उसने दुहा,
निचोड़ा
सत्व खींच लेने पर भी
जो शेष बचा होगा- वह भी ले लिया,
नहीं कुछ छोड़ा ,
फिर उस शुष्क ह्र्दय को उसने व्यर्थ मानकर
रिक्त उपेक्षा, तिक्त व्यथा से
तोड़ा और मरोड़ा
जो टपका वह लहू नहीं था…
रस की धारा थी, अमृत था,
जिसने क्षत-विक्षत घावों को भरा और
टूटे भावों को जोड़ा ।