"पूजा / अशोक शाह" के अवतरणों में अंतर
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+ | या किसी निर्दोष को किया गया हो दण्डित | ||
+ | जिसके द्वारा फैलायी गयी हो हिंसा और द्वेष | ||
+ | नहीं करना है उस पुस्तक का पाठ जिसने | ||
+ | तय कर दी हो हमारे विचार की सीमाएं | ||
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+ | और न पूजने से अप्रसन्न | ||
+ | जाने या अनजाने नहीं करेंगे उसका उपयोग | ||
+ | कायनात के किसी सजीव या निर्जीव के विरूद्ध | ||
+ | न देंगे कोई दुहांई | ||
+ | चलो पूजते हैं उसे जो हमसे हो अलग | ||
+ | और हम जानते नहीं हो उसे | ||
+ | अन्यथा अपनी ही पूजा का | ||
+ | क्या होगा औचित्य | ||
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21:53, 7 अगस्त 2020 के समय का अवतरण
चलो उसे पूजते हैं
जो हमारी कल्पना से गढ़ा न हो
पहनता न हो हमारी तरह साड़ी धोती या कमरबन्द
जो किसी मरे पौधे या जीव की पीड़ा से न बना हो
अर्पित करेंगे वह पुष्प जो तोड़ा गया नहीं हो
जली अगरबत्तियाँ नहीं लगायेंगे
नहीं करेंगे उपयोग उस भाषा के मंत्र
जिससे कहे गये हों मनुष्यों के लिए अपशब्द
या किसी निर्दोष को किया गया हो दण्डित
जिसके द्वारा फैलायी गयी हो हिंसा और द्वेष
नहीं करना है उस पुस्तक का पाठ जिसने
तय कर दी हो हमारे विचार की सीमाएं
चलो पूजते हैं उसको
जो हमारी पूजा से न होता हो प्रसन्न
और न पूजने से अप्रसन्न
जाने या अनजाने नहीं करेंगे उसका उपयोग
कायनात के किसी सजीव या निर्जीव के विरूद्ध
न देंगे कोई दुहांई
चलो पूजते हैं उसे जो हमसे हो अलग
और हम जानते नहीं हो उसे
अन्यथा अपनी ही पूजा का
क्या होगा औचित्य