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"वायु के प्रति / सुमित्रानंदन पंत" के अवतरणों में अंतर

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अधर मर्मरयुत, पुलकित अंग<br>
 
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चूमती चलपद चपल तरंग,<br>
 
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चटकती कलियाँ पा भ्रू-भंग<br>
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चटकतीं कलियाँ पा भ्रू-भंग<br>
 
थिरकते तृण; तरु-पात!<br><br>
 
थिरकते तृण; तरु-पात!<br><br>
  

23:01, 27 अगस्त 2006 का अवतरण

लेखक: सुमित्रानंदन पंत

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प्राण! तुम लघु लघु गात!
नील नभ के निकुंज में लीन,
नित्य नीरव, नि:संग नवीन,
निखिल छवि की छवि! तुम छवि हीन
अप्सरी-सी अज्ञात!

अधर मर्मरयुत, पुलकित अंग
चूमती चलपद चपल तरंग,
चटकतीं कलियाँ पा भ्रू-भंग
थिरकते तृण; तरु-पात!

हरित-द्युति चंचल अंचल छोर
सजल छवि, नील कंचु, तन गौर,
चूर्ण कच, साँस सुगंध झकोर,
परों में सांय-प्रात!

विश्व हृत शतदल निभृत निवास,
अहिर्निशि जग-जीवन-हास-विलास,
अदृश्य, अस्पृश्य अजात!