"हम लड़ेंगे साथी / पाश" के अवतरणों में अंतर
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हम लड़ेंगे साथी, उदास मौसम के लिए | हम लड़ेंगे साथी, उदास मौसम के लिए | ||
हम लड़ेंगे साथी, ग़ुलाम इच्छाओं के लिए | हम लड़ेंगे साथी, ग़ुलाम इच्छाओं के लिए | ||
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हम चुनेंगे साथी, ज़िन्दगी के टुकड़े | हम चुनेंगे साथी, ज़िन्दगी के टुकड़े | ||
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हथौड़ा अब भी चलता है, उदास निहाई पर | हथौड़ा अब भी चलता है, उदास निहाई पर | ||
हल अब भी चलता हैं चीख़ती धरती पर | हल अब भी चलता हैं चीख़ती धरती पर | ||
− | यह काम हमारा नहीं बनता है, | + | यह काम हमारा नहीं बनता है, सवाल नाचता है |
− | + | सवाल के कन्धों पर चढ़कर | |
हम लड़ेंगे साथी | हम लड़ेंगे साथी | ||
क़त्ल हुए जज़्बों की क़सम खाकर | क़त्ल हुए जज़्बों की क़सम खाकर | ||
बुझी हुई नज़रों की क़सम खाकर | बुझी हुई नज़रों की क़सम खाकर | ||
− | हाथों पर पड़े | + | हाथों पर पड़े गाँठों की क़सम खाकर |
हम लड़ेंगे साथी | हम लड़ेंगे साथी | ||
हम लड़ेंगे तब तक | हम लड़ेंगे तब तक | ||
जब तक वीरू बकरिहा | जब तक वीरू बकरिहा | ||
− | बकरियों का | + | बकरियों का पेशाब पीता है |
खिले हुए सरसों के फूल को | खिले हुए सरसों के फूल को | ||
जब तक बोने वाले ख़ुद नहीं सूँघते | जब तक बोने वाले ख़ुद नहीं सूँघते | ||
पंक्ति 38: | पंक्ति 38: | ||
हम लड़ेंगे जब तक | हम लड़ेंगे जब तक | ||
दुनिया में लड़ने की ज़रूरत बाक़ी है | दुनिया में लड़ने की ज़रूरत बाक़ी है | ||
− | जब | + | जब बन्दूक न हुई, तब तलवार होगी |
जब तलवार न हुई, लड़ने की लगन होगी | जब तलवार न हुई, लड़ने की लगन होगी | ||
लड़ने का ढंग न हुआ, लड़ने की ज़रूरत होगी | लड़ने का ढंग न हुआ, लड़ने की ज़रूरत होगी | ||
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हम लड़ेंगे | हम लड़ेंगे | ||
अपनी सज़ा कबूलने के लिए | अपनी सज़ा कबूलने के लिए | ||
− | लड़ते हुए | + | लड़ते हुए मर जाने वाले की |
− | + | याद ज़िन्दा रखने के लिए | |
हम लड़ेंगे | हम लड़ेंगे | ||
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22:04, 13 सितम्बर 2020 के समय का अवतरण
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हम लड़ेंगे साथी, उदास मौसम के लिए
हम लड़ेंगे साथी, ग़ुलाम इच्छाओं के लिए
हम चुनेंगे साथी, ज़िन्दगी के टुकड़े
हथौड़ा अब भी चलता है, उदास निहाई पर
हल अब भी चलता हैं चीख़ती धरती पर
यह काम हमारा नहीं बनता है, सवाल नाचता है
सवाल के कन्धों पर चढ़कर
हम लड़ेंगे साथी
क़त्ल हुए जज़्बों की क़सम खाकर
बुझी हुई नज़रों की क़सम खाकर
हाथों पर पड़े गाँठों की क़सम खाकर
हम लड़ेंगे साथी
हम लड़ेंगे तब तक
जब तक वीरू बकरिहा
बकरियों का पेशाब पीता है
खिले हुए सरसों के फूल को
जब तक बोने वाले ख़ुद नहीं सूँघते
कि सूजी आँखों वाली
गाँव की अध्यापिका का पति जब तक
युद्ध से लौट नहीं आता
जब तक पुलिस के सिपाही
अपने भाइयों का गला घोंटने को मज़बूर हैं
कि दफ़्तरों के बाबू
जब तक लिखते हैं लहू से अक्षर
हम लड़ेंगे जब तक
दुनिया में लड़ने की ज़रूरत बाक़ी है
जब बन्दूक न हुई, तब तलवार होगी
जब तलवार न हुई, लड़ने की लगन होगी
लड़ने का ढंग न हुआ, लड़ने की ज़रूरत होगी
और हम लड़ेंगे साथी
हम लड़ेंगे
कि लड़े बग़ैर कुछ नहीं मिलता
हम लड़ेंगे
कि अब तक लड़े क्यों नहीं
हम लड़ेंगे
अपनी सज़ा कबूलने के लिए
लड़ते हुए मर जाने वाले की
याद ज़िन्दा रखने के लिए
हम लड़ेंगे