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"हमारे कृषक / रामधारी सिंह "दिनकर"" के अवतरणों में अंतर
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बैलों के ये बंधू वर्ष भर क्या जाने कैसे जीते हैं | बैलों के ये बंधू वर्ष भर क्या जाने कैसे जीते हैं | ||
बंधी जीभ, आँखें विषम गम खा शायद आँसू पीते हैं | बंधी जीभ, आँखें विषम गम खा शायद आँसू पीते हैं | ||
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11:11, 22 सितम्बर 2020 का अवतरण
जेठ हो कि हो पूस, हमारे कृषकों को आराम नहीं है
छूटे कभी संग बैलों का ऐसा कोई याम नहीं है
मुख में जीभ शक्ति भुजा में जीवन में सुख का नाम नहीं है
वसन कहाँ? सूखी रोटी भी मिलती दोनों शाम नहीं है
बैलों के ये बंधू वर्ष भर क्या जाने कैसे जीते हैं
बंधी जीभ, आँखें विषम गम खा शायद आँसू पीते हैं