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"फुरसत / निदा फ़ाज़ली" के अवतरणों में अंतर
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मैं नहीं समझ पाया आज तक इस उलझन को | मैं नहीं समझ पाया आज तक इस उलझन को |
18:10, 11 अक्टूबर 2020 के समय का अवतरण
मैं नहीं समझ पाया आज तक इस उलझन को
खून में हरारत थी, या तेरी मोहब्बत थी
क़ैस हो कि लैला हो, हीर हो कि राँझा हो
बात सिर्फ़ इतनी है, आदमी को फुरसत थी