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{{KKRachna
|रचनाकार=निदा फ़ाज़ली
|अनुवादक=
|संग्रह=मौसम आते जाते हैं / निदा फ़ाज़ली
}} {{KKCatGhazal}}<poem>बदला न अपने आपको जो थे वही रहेमिलते रहे सभी से अजनबी रहे
बदला न अपने आपको जो थे वही रहे<br>अपनी तरह सभी को किसी की तलाश थीमिलते हम जिसके भी क़रीब रहे सभी से अजनबी दूर ही रहे<br><br>
अपनी तरह सभी दुनिया न जीत पाओ तो हारो न खुद को किसी की तलाश थी<br>तुमहम जिसके भी क़रीब थोड़ी बहुत तो जे़हन में नाराज़गी रहे दूर ही रहे<br><br>
दुनिया न जीत पाओ गुज़रो जो बाग़ से तो हारो न खुद को तुम<br>दुआ माँगते चलोथोड़ी बहुत तो जे़हन में नाराज़गी जिसमें खिले हैं फूल वो डाली हरी रहे<br><br>
गुज़रो जो बाग़ से तो दुआ माँगते चलो<br>जिसमें खिले हैं फूल वो डाली हरी रहे<br><br> हर वक़्त हर मकाम पे हँसना मुहाल है<br>रोने के वास्ते भी कोई बेकली रहे <br><br/poem>
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