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"रामकुमार कृषक" के अवतरणों में अंतर
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10:42, 27 अक्टूबर 2020 का अवतरण
रामकुमार कृषक
जन्म | 01 अक्तूबर 1943 |
---|---|
जन्म स्थान | गाँव गुलड़िया, अमरोहा, जनपद मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
सुर्ख़ियों के स्याह चेहरे (1977) (नवगीत संग्रह) । नीम की पत्तियाँ (1984) (ग़ज़ल संग्रह) । फिर वही आकाश (1991)आदमी के नाम पर मज़हब नहीं (1991) मैं हूं हिंदुस्तान (1998) और, लौट आएंगी आंखें (2002) (कविता-संग्रह) । प्रौढ़ शिक्षा के लिए "टीपू की माँ", "सबसे सुन्दर हाथ" और "घीसू और माधो" नामक पुस्तकों के रचयिता । | |
विविध | |
हिन्दी की अनियतकालीन जनवादी पत्रिका 'अलाव' का सम्पादन। | |
जीवन परिचय | |
रामकुमार कृषक / परिचय |
रचना-संग्रह
- फिर वही आकाश / रामकुमार कृषक (कविता संग्रह)
- लौट आएँगी आँखें / रामकुमार कृषक (कविता संग्रह)
- सुर्ख़ियों के स्याह चेहरे / रामकुमार कृषक (नवगीत संग्रह)
- नीम की पत्तियाँ / रामकुमार कृषक (ग़ज़ल संग्रह)
- अपजस अपने नाम / रामकुमार कृषक (ग़ज़ल संग्रह)
कुछ प्रतिनिधि रचनाएँ
- माँ ने कहा हुआ क्या तुझको / रामकुमार कृषक
- आओ मंदिर मस्जिद खेलें / रामकुमार कृषक
- चेहरे तो मायूस मुखौटों पर / रामकुमार कृषक
- घेर कर आकाश उनको / रामकुमार कृषक
- आज तो मन अनमना / रामकुमार कृषक
- हमने खुद को नकार कर / रामकुमार कृषक
- आइए गांव की कुछ ख़बर ले चलें / रामकुमार कृषक
- आगाज़ अगर हो / रामकुमार कृषक
- ऐ ज़माने ज़िन्दाबाद / रामकुमार कृषक
- ऊँची कुर्सी काला चोगा / रामकुमार कृषक
- हे राम ! / रामकुमार कृषक
- वे कबूतरबाज़ हैं ! / रामकुमार कृषक
- शहर में गाम जी लेंगे ! / रामकुमार कृषक
- बरसते ये नहीं बादल / रामकुमार कृषक
- वो समाजवादी साहू हैं / रामकुमार कृषक
- दुख कहाँ से आ रहे बतलाइए / रामकुमार कृषक
- लोग रहते हैं जिन मकानों में / रामकुमार कृषक
- हम नहीं खाते हमें बाज़ार खाता है / रामकुमार कृषक
- आप गाने की बात करते हैं / रामकुमार कृषक
- परबत के पैताने पहुँचे परबत के सिरहाने भी / रामकुमार कृषक
- अनशन पर बैठे हत्यारे/ रामकुमार कृषक
ग़ज़लें
- ये खता तो हो गई है / रामकुमार कृषक
- बतलाए देते हैं यूँ तो / रामकुमार कृषक
- बाखबर हम हैं मगर / रामकुमार कृषक
- रात लम्बी रात से लम्बे पहर / रामकुमार कृषक
- मस्त रहना है तो पूछिए क्या करें / रामकुमार कृषक
- सांस मत लेना हवाओं में ज़हर है / रामकुमार कृषक
- हम यहाँ फ़ुटपाथ पर हैं और वह बैठी वहाँ / रामकुमार कृषक
- आइए, चलते हैं थोड़ा घूमना हो जाएगा / रामकुमार कृषक
- आपने शुभ लाभ लिक्खा था बही पर / रामकुमार कृषक
- कई बार वैसे तो हम भी छपे-उपे अख़बारों में / रामकुमार कृषक
- घेरकर आकाश उनको पर दिए होंगे / रामकुमार कृषक
- आइए गाँव की कुछ ख़बर ले चलें / रामकुमार कृषक
- चेहरे तो मायूस, मुखौटों पर मुस्कानें दुनिया की / रामकुमार कृषक
- हमसे मौसम ने कहा हमने निकाली चादर / रामकुमार कृषक