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"फ़िलहाल -2/ प्रफुल्ल कुमार परवेज़" के अवतरणों में अंतर

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जिनके जीने या मरने से
 
कहीं फ़र्क़ नहीं पड़ता
 
वे इलाज के लिए
 
सिविल अस्पताल में
 
क़तारबद्ध हैं
 
जिनका कहीं पहुँचना
 
ज़रूरी नहीं है
 
वे रेलों में सवार हैं
 
  
जिनको होना है  
+
आँख से रिसता आँसू नहीं है
न घर का न घाट का
+
दिल से उमड़ता दर्द नहीं है
वे विद्यालयों में दाख़िल हैं
+
रिश्तों से जुड़ा दु:ख नहीं है
 +
केवल बेवक़्त मुसीबत है
 +
कपूरे के लिए
 +
बहन की अचानक मौत
  
दोपहर जेठ की है
+
अभी -अभी ही तो था
पेड़ बबूल के
+
सोच में कपूरा
छाँव सारी सेठ की है
+
कैसे लड़ा जाएगा भूख से
 +
पहले ही इस बार
 +
खिंच नहीं पाई है
 +
पहले पखवारे तक भी
 +
महीने की पगार
  
यह क़रीब-क़रीब
+
गिड़गिड़ाता  है कपूरा
अपने मातम में शरीक लोगों का
+
माँगता है एडवांस
फुसफुसाता वार्तालाप है
+
किताब खोलता है अफ़सर
बेआवाज़ लोगों का
+
करता है इन्कार
ख़ामोश विलाप है
+
नहीं है कोई नियम
 
+
नहीं है कोई प्रावधान
सड़क सुनसान है
+
नितांत निजी मामला है
लोकतांत्रिक छूट के तहत
+
बहन का दाह संस्कार
लोग पगडंडियों पर
+
भटके हुए हैं
+
आसमान से गिरे थे
+
 
फ़िलहाल
 
फ़िलहाल
खजूर में
+
सोचता है कपूरा
अटके हुए हैं
+
काश काटता साँप
 +
पहली के बाद
 +
मरती बहन
 +
पहली के आसपास.
 +
 
 
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09:05, 3 अक्टूबर 2008 के समय का अवतरण


आँख से रिसता आँसू नहीं है
दिल से उमड़ता दर्द नहीं है
रिश्तों से जुड़ा दु:ख नहीं है
केवल बेवक़्त मुसीबत है
कपूरे के लिए
बहन की अचानक मौत

अभी -अभी ही तो था
सोच में कपूरा
कैसे लड़ा जाएगा भूख से
पहले ही इस बार
खिंच नहीं पाई है
पहले पखवारे तक भी
महीने की पगार

गिड़गिड़ाता है कपूरा
माँगता है एडवांस
किताब खोलता है अफ़सर
करता है इन्कार
नहीं है कोई नियम
नहीं है कोई प्रावधान
नितांत निजी मामला है
बहन का दाह संस्कार
फ़िलहाल
सोचता है कपूरा
काश काटता साँप
पहली के बाद
मरती बहन
पहली के आसपास.