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है तो है (ग़ज़ल) / दीप्ति मिश्र
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08:58, 7 अक्टूबर 2008
कब कहा मैनें कि वो मिल जाये मुझको, मै उसे
गै़र
ग़ैर
न हो जाये वो बस इतनी हसरत है तो है
दोस्त बन कर दुश्मनों-सा वो सताता है मुझे
फ़िर
फिर
भी उस
जालिम
ज़ालिम
पे मरना अपनी फ़ितरत है तो है
अनिल जनविजय
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