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"मिक्लोश रादनोतीन / परिचय" के अवतरणों में अंतर

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यहूदी परिवार में 1907 में जन्मे राद्नोती की कविता की दूसरी किताब “आधुनिक गड़रिये का गीत” को अश्लीलता के आरोप में जब्त किया गया और इसके लिए कुछ दिन उन्हें जेल में रहना पड़ा।  
 
यहूदी परिवार में 1907 में जन्मे राद्नोती की कविता की दूसरी किताब “आधुनिक गड़रिये का गीत” को अश्लीलता के आरोप में जब्त किया गया और इसके लिए कुछ दिन उन्हें जेल में रहना पड़ा।  
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यहूदी होने के कारण जर्मन फ़ासिस्टों ने उन्हें तीसरी बार जबरन यूगोस्लाविया स्थित बोर के यन्त्रणा शिविर में भेजा, जहाँ उन्होंने तांबे की खदानों में काम किया।  
 
यहूदी होने के कारण जर्मन फ़ासिस्टों ने उन्हें तीसरी बार जबरन यूगोस्लाविया स्थित बोर के यन्त्रणा शिविर में भेजा, जहाँ उन्होंने तांबे की खदानों में काम किया।  
  
रूस की लाल सेना के आने की ख़बर से फ़ासिस्ट जर्मन सैनिकों ने यंत्रणा शिविर के बन्दियों को अन्यत्र भेजकर उसे ख़ाली कराया। लेकिन इक्कीस साथियों के साथ मिक्लोश रादनोती को जबरन कूच करने को कहा गया। यह उनकी मौत की कूच थी। राद्नोती जब पोस्टकार्ड शीर्षक से कविताएँ लिख रहे थे तभी उन्हें पीटा गया। पीटने से घायल और चलने से लाचार मात्र छत्तीस साल के राद्नोती को उनके इक्कीस साथियों के साथ गोली मार दी गई। द्वितीय विश्व-युद्ध खत्म होने के बाद जब सामूहिक क़ब्रों को खोदा गया तो उनकी  जेब में पत्नी के नाम पेंसिल से लिखी हुई कुछ कविताएँ मिलीं जो बाद में “फोमिंग स्काई” नामक कविता संग्रह में संकलित की गईं। उनकी “जबरन कूच” और” रेज़ा रेज़ा”  कविताएँ उसी दौर की हैं।
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रूस की लाल सेना के आने की ख़बर से फ़ासिस्ट जर्मन सैनिकों ने यंत्रणा शिविर के बन्दियों को अन्यत्र भेजकर उसे ख़ाली कराया। लेकिन इक्कीस साथियों के साथ मिक्लोश रादनोती को जबरन कूच करने को कहा गया। यह उनकी मौत की कूच थी। राद्नोती जब पोस्टकार्ड शीर्षक से कविताएँ लिख रहे थे तभी उन्हें पीटा गया।  
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पीटने से घायल और चलने से लाचार मात्र छत्तीस साल के राद्नोती को उनके इक्कीस साथियों के साथ फ़ासिस्टों ने गोली मार दी।
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द्वितीय विश्व-युद्ध खत्म होने के बाद जब सामूहिक क़ब्रों को खोदा गया तो उनकी  जेब में पत्नी के नाम पेंसिल से लिखी हुई कुछ कविताएँ मिलीं जो बाद में “फोमिंग स्काई” नामक कविता संग्रह में संकलित की गईं। उनकी “जबरन कूच” और” रेज़ा रेज़ा”  कविताएँ उसी दौर की हैं।

13:28, 1 दिसम्बर 2020 के समय का अवतरण

यहूदी परिवार में 1907 में जन्मे राद्नोती की कविता की दूसरी किताब “आधुनिक गड़रिये का गीत” को अश्लीलता के आरोप में जब्त किया गया और इसके लिए कुछ दिन उन्हें जेल में रहना पड़ा।

1934 में हंगारी साहित्य में उन्होंने पीएचडी की। इसी वर्ष फानी गार्मती से शादी की।

उन्होंने वर्जिल,शेली,रेम्बा,मलार्मे,एलुआर सरीखे अनेक कवियों की कविताओं के अनुवाद हंगारी में किए ।

यहूदी होने के कारण जर्मन फ़ासिस्टों ने उन्हें तीसरी बार जबरन यूगोस्लाविया स्थित बोर के यन्त्रणा शिविर में भेजा, जहाँ उन्होंने तांबे की खदानों में काम किया।

रूस की लाल सेना के आने की ख़बर से फ़ासिस्ट जर्मन सैनिकों ने यंत्रणा शिविर के बन्दियों को अन्यत्र भेजकर उसे ख़ाली कराया। लेकिन इक्कीस साथियों के साथ मिक्लोश रादनोती को जबरन कूच करने को कहा गया। यह उनकी मौत की कूच थी। राद्नोती जब पोस्टकार्ड शीर्षक से कविताएँ लिख रहे थे तभी उन्हें पीटा गया।

पीटने से घायल और चलने से लाचार मात्र छत्तीस साल के राद्नोती को उनके इक्कीस साथियों के साथ फ़ासिस्टों ने गोली मार दी।

द्वितीय विश्व-युद्ध खत्म होने के बाद जब सामूहिक क़ब्रों को खोदा गया तो उनकी जेब में पत्नी के नाम पेंसिल से लिखी हुई कुछ कविताएँ मिलीं जो बाद में “फोमिंग स्काई” नामक कविता संग्रह में संकलित की गईं। उनकी “जबरन कूच” और” रेज़ा रेज़ा” कविताएँ उसी दौर की हैं।