"प्रकृति-परी / सुधा गुप्ता" के अवतरणों में अंतर
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− | प्रकृति परी | + | प्रकृति- परी |
हाथ लिये घूमती | हाथ लिये घूमती | ||
जादू की छड़ी | जादू की छड़ी | ||
पंक्ति 30: | पंक्ति 30: | ||
‘चिरवौनी’ करती है | ‘चिरवौनी’ करती है | ||
पिकी, चोंच मार के | पिकी, चोंच मार के | ||
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मायके आती | मायके आती | ||
पंक्ति 73: | पंक्ति 67: | ||
कड़की, डरे, झरे | कड़की, डरे, झरे | ||
− | |||
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सलोनी भोर | सलोनी भोर | ||
पंक्ति 103: | पंक्ति 92: | ||
सोई राज कन्या-सी | सोई राज कन्या-सी | ||
− | + | सजके बैठी | |
आकाश की अटारी | आकाश की अटारी | ||
बालिका-बधू | बालिका-बधू | ||
पंक्ति 133: | पंक्ति 122: | ||
कान चुरा ले भागी | कान चुरा ले भागी | ||
− | + | जीभर जीना | |
गाना-चहचहाना | गाना-चहचहाना | ||
पंछी सिखाते: | पंछी सिखाते: | ||
पंक्ति 175: | पंक्ति 164: | ||
खिले इतने घने | खिले इतने घने | ||
− | + | सूरजमुखी | |
सूर्य दिशा में घूमें | सूर्य दिशा में घूमें | ||
पूरे दिवस | पूरे दिवस | ||
पंक्ति 189: | पंक्ति 178: | ||
पेड़ हैरान | पेड़ हैरान | ||
पूछें- हे भगवान्! | पूछें- हे भगवान्! | ||
− | इंसानी | + | इंसानी लिप्सा |
हम क्या करेंगे जी? | हम क्या करेंगे जी? | ||
कट-कट मरेंगे जी? | कट-कट मरेंगे जी? | ||
पंक्ति 199: | पंक्ति 188: | ||
अक्षितिज सजी थी | अक्षितिज सजी थी | ||
− | + | छींटे, बौछार | |
भिगो, खिलखिलाता | भिगो, खिलखिलाता | ||
शोख़ झरना | शोख़ झरना | ||
− | + | स्फटिक की चादर | |
किसने जड़े मोती? | किसने जड़े मोती? | ||
पंक्ति 208: | पंक्ति 197: | ||
गुलमोहर सजे | गुलमोहर सजे | ||
हरी पोशाक | हरी पोशाक | ||
− | चोटी में गूँथे | + | चोटी में गूँथे फूल |
छात्राएँ चलीं स्कूल | छात्राएँ चलीं स्कूल | ||
पंक्ति 217: | पंक्ति 206: | ||
अजब जादूगरी | अजब जादूगरी | ||
− | बढ़ता | + | बढ़ता जाए |
− | + | धरती का बुख़ार | |
आर न पार | आर न पार | ||
उन्मत्त है मानव | उन्मत्त है मानव | ||
पंक्ति 225: | पंक्ति 214: | ||
दिवा अमल | दिवा अमल | ||
सरि में हलचल | सरि में हलचल | ||
− | पाल | + | पाल धवल |
− | खुले जो तट | + | खुले जो तट बन्ध |
नौका चली उछल | नौका चली उछल | ||
− | + | फेंकता आग | |
भर-भर के मुट्ठी | भर-भर के मुट्ठी | ||
धरा झुलसी | धरा झुलसी | ||
पंक्ति 237: | पंक्ति 226: | ||
रात के साथी | रात के साथी | ||
सब विदा हो चुके | सब विदा हो चुके | ||
− | + | फैली उजास | |
अटका रह गया | अटका रह गया | ||
− | + | फीके ध्ब्बे-सा चाँद | |
आया आश्विन | आया आश्विन | ||
पंक्ति 248: | पंक्ति 237: | ||
सृष्टि सुन्दरी | सृष्टि सुन्दरी | ||
− | + | फिर- फिर रिझाती | |
मत्त यौवना | मत्त यौवना | ||
टूट जाता संयम | टूट जाता संयम | ||
− | अनादि | + | अनादि पुरुष का |
मैल, कीचड़ | मैल, कीचड़ | ||
− | सड़े पत्तों की | + | सड़े पत्तों की गंध |
लपेटे तन | लपेटे तन | ||
बंदर-सी खुजाती | बंदर-सी खुजाती | ||
पंक्ति 260: | पंक्ति 249: | ||
सिर पे ताज | सिर पे ताज | ||
− | पीठ पर है | + | पीठ पर है दागा |
गीतों की रानी | गीतों की रानी | ||
− | गाती मीठा | + | गाती मीठा तराना |
− | वसन्त! | + | वसन्त! फिर आना |
प्रिय न आए | प्रिय न आए | ||
पंक्ति 291: | पंक्ति 280: | ||
आ गया पौष | आ गया पौष | ||
लाया ठण्डी सौगातें | लाया ठण्डी सौगातें | ||
− | + | बर्फ़ीली रातें | |
पछाड़ खाती हवा | पछाड़ खाती हवा | ||
कोई घर न खुला | कोई घर न खुला |
15:07, 4 दिसम्बर 2020 के समय का अवतरण
प्रकृति- परी
हाथ लिये घूमती
जादू की छड़ी
मोहक रूप धरे
सब का मन हरे
धरा सुन्दरी!
तेरा मोहक रूप
बड़ा निराला
निज धुन मगन
हर कोई मतवाला
वसन्त आया
बहुत ही बातूनी
हुई हैं मैना
चहकती फिरतीं
अरी, आ, री बहना
आम की डाली
खुशबू बिखेरती
पास बुलाती
‘चिरवौनी’ करती है
पिकी, चोंच मार के
मायके आती
गंध मदमाती-सी
कली बेला की
वर्ष में एक बार
यही रीति-त्योहार
शेफाली खिली
वन महक गया
ॠतु ने कहा:
गर्व मत करना
पर्व यह भी गया
काम न आई
कोहरे की रज़ाई
ठण्डक खाई
छींक-छींक रजनी
आँसू टपका रही
दुग्ध-धवल
चाँदनी में नहाया
शुभ्र, मंगल
आलोक जगमग
हँस रहा जंगल
तम घिरा रे
काजल के पर्वत
उड़ते आए
जी भर बरसेंगे
धान-बच्चे हँसेंगे
घुमन्तू मेघ
बड़े ही दिलफेंक
शम्पा को देखा
शोख़ी पे मर मिटे
कड़की, डरे, झरे
सलोनी भोर
श्वेत चटाई बिछा
नीले आँगन
फुरसत में बैठी
कविता पढ़ रही
फाल्गुनी रात
बस्तर की किशोरी
सज-धज के
‘घोटुल’ को तैयार
चाँद ढूँढ लिया है
वर्षा की भोर,
मेघों की नौका-दौड़
शुरू हो गई
‘रेफरी’ थी जो हवा,
खेल शामिल हुई
वन पथ में
जंगली फूल-गंध
वनैली घास
चीना-जुही लतर
सोई राज कन्या-सी
सजके बैठी
आकाश की अटारी
बालिका-बधू
नीला आँचल उठा
झाँके मासूम घटा
वर्षा से ऊबे
शरदाकाश तले
हरी घास पे
रंग-बिरंगे पंछी
पिकनिक मनाते
आज सुबह
आकाश में अटकी
दिखाई पड़ी
फटी कागज़ी चिट्ठी
आह! टूटा चाँद था!!
ज्वर से तपे
जंगल के पैताने
आ बैठी धूप
प्यासा बेचैन रोगी
दो बूँद पानी नहीं
कोयलिया ने
गाए गीत रसीले
कोई न रीझा
धन की अंधी दौड़
कान चुरा ले भागी
जीभर जीना
गाना-चहचहाना
पंछी सिखाते:
केवल वर्तमान
कल का नहीं भान
परिन्दे गाते
कृतज्ञता से गीत
प्रभु की प्रति:
उड़ने को पाँखें दीं
और चंचु को दाना
पौष का सूर्य
सामने नहीं आता
मुँह चुराता
बेवफ़ा नायक-सा
धरती को फुसलाता
धरा के जाये
वसन्त आने पर
खिलखिलाए
फूले नहीं समाए
मस्ती में गीत गाए
बहुत छोटा
तितली का जीवन
उड़ती रहे
पराग पान करे
कोई कुछ न कहे
जंगल गाता
भींगुर लेता तान
झिल्ली झंकारे
टिम-टिम जुगनू
तरफओं के चौबारे
अपने भार
झुका है हरसिंगार
फूलों का बोझ
उठाए नहीं बने
खिले इतने घने
सूरजमुखी
सूर्य दिशा में घूमें
पूरे दिवस
प्रमाण करते-से
भक्ति भाव में झूमें
पावस ॠतु:
प्रिया को टेर रहा
हर्षित मोर
पंख पैफला नाचता
प्रेम-कथा बाँचता
पेड़ हैरान
पूछें- हे भगवान्!
इंसानी लिप्सा
हम क्या करेंगे जी?
कट-कट मरेंगे जी?
हुई जो भोर
टुहँक पड़े मोर
देखा नशारा
नीली बन्दनवार
अक्षितिज सजी थी
छींटे, बौछार
भिगो, खिलखिलाता
शोख़ झरना
स्फटिक की चादर
किसने जड़े मोती?
पाँत में खड़े
गुलमोहर सजे
हरी पोशाक
चोटी में गूँथे फूल
छात्राएँ चलीं स्कूल
ठण्डी बयार
सलोनी-सी सुबह
मीठी ख़ुमारी
कोकिल कूक उठी
अजब जादूगरी
बढ़ता जाए
धरती का बुख़ार
आर न पार
उन्मत्त है मानव
स्वयंघाती दानव
दिवा अमल
सरि में हलचल
पाल धवल
खुले जो तट बन्ध
नौका चली उछल
फेंकता आग
भर-भर के मुट्ठी
धरा झुलसी
दिलजला सूरज
जला के मानेगा
रात के साथी
सब विदा हो चुके
फैली उजास
अटका रह गया
फीके ध्ब्बे-सा चाँद
आया आश्विन
मतवाला बनाए
हवा खुनकी
मनचीता पाने को
चाह पिफर ठुनकी
सृष्टि सुन्दरी
फिर- फिर रिझाती
मत्त यौवना
टूट जाता संयम
अनादि पुरुष का
मैल, कीचड़
सड़े पत्तों की गंध
लपेटे तन
बंदर-सी खुजाती
आ खड़ी बरसात
सिर पे ताज
पीठ पर है दागा
गीतों की रानी
गाती मीठा तराना
वसन्त! फिर आना
प्रिय न आए
बैठी दीप जलाए
आकाश तले
आँसू गिराती निशा
न रो, उषा ने कहा
गुलाबी, नीले
बैंगनी व ध्वल
रंग-निर्झर
सावनी की झाड़ियाँ
हँस रहीं जी भर
बुलबुल का
बहार से मिलन
रहा नायाब
गाती रही तराना
खिलते थे गुलाब
किसकी याद
सिर पटकती है
लाचार हवा
खोज-खोज के हारी
नहीं दर्द की दवा
आ गया पौष
लाया ठण्डी सौगातें
बर्फ़ीली रातें
पछाड़ खाती हवा
कोई घर न खुला
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