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इस बारिश में / नरेश सक्सेना

2 bytes added, 10:20, 24 फ़रवरी 2021
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जिसके पास चली गयी गई मेरी ज़मीन
उसी के पास अब मेरी
बारिश भी चली गयीगई
अब जो घिरती हैं काली घटाएंघटाएँ
उसी के लिए घिरती है
कूकती हैं कोयलें उसी के लिए
उसी के लिए उठती है
धरती के सीने से सोंधी सुगंधसुगन्ध
अब नहीं मेरे लिए
एक हरी बूँद नहीं
तोते नहीं, ताल नहीं, नदी नहीं, आर्द्रा नक्षत्र नहीं,
कजरी मल्हाहर मल्हार नहीं मेरे लिए
जिसकी नहीं कोई जमीनज़ामीनउसका नहीं कोई आसमान।आसमान ।
</poem>
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