"हाइकु / पूनम सैनी / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर
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+ | 1 | ||
+ | ऊसर मन | ||
+ | भाव कब उपजे | ||
+ | रहे निरीह | ||
+ | बाँजु च मन | ||
+ | भौ कबारी उपजी | ||
+ | रै बिचारू ह्वे | ||
+ | 2 | ||
+ | सूरज झाँके | ||
+ | रंग- रूप निहारे | ||
+ | दर्पण झील | ||
+ | सुर्ज देखणु | ||
+ | रंग-रूप च हेरदु | ||
+ | दर्पण ताल | ||
+ | 3 | ||
+ | गहराई में | ||
+ | कितने घर,बस्ती | ||
+ | बसाती झील | ||
+ | उख गैरै माँ | ||
+ | कतगा घौर, बस्ति | ||
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+ | 4 | ||
+ | तुम साँझ की | ||
+ | ठण्डी बयार प्रिये! | ||
+ | मन लू घिरा | ||
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+ | तु रुमुक कि | ||
+ | ठण्डी हवा छैं प्यारी | ||
+ | मन लू घिर्यूँ | ||
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+ | साँझ ढले जो | ||
+ | तुमसे मिलने की | ||
+ | आशा ढलती | ||
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+ | रूम्क पड़दि | ||
+ | तुम तैं मिलणै कि | ||
+ | आस ढळदि | ||
+ | 6 | ||
+ | अनावरण | ||
+ | करने लगी साँझ | ||
+ | रात जो आई | ||
+ | |||
+ | उठौण लग्गी | ||
+ | पर्दा तब रुमुक | ||
+ | रात ऐ जब | ||
+ | 7 | ||
+ | सुन री रैना | ||
+ | पाहुन कब थमे | ||
+ | ढलेगी तू भी | ||
+ | |||
+ | सूँण रे रात | ||
+ | ढुंगा कब थमिन | ||
+ | ढळी जैली तु | ||
+ | 8 | ||
+ | सागर देखो | ||
+ | जिंदगी की कहानी | ||
+ | ज्वार भाटा- सी | ||
+ | |||
+ | समोद्र द्याखा | ||
+ | जिंदगी कि य कानी | ||
+ | ज्वार-भाटा सि | ||
+ | 9 | ||
+ | मंथन कर | ||
+ | मन में ही अमृत | ||
+ | सागर -जैसे | ||
+ | |||
+ | छोळ लि दौं त | ||
+ | मन माँ इं अमरित | ||
+ | समोद्र जनूँ | ||
+ | 10 | ||
+ | सम विषम | ||
+ | समा खुद भीतर | ||
+ | सागर बन | ||
+ | |||
+ | सम-विसम | ||
+ | अफ्फु माँ इ समौ न | ||
+ | समोद्र बण | ||
+ | 11 | ||
+ | छेड़ो ना तुम | ||
+ | छुईमुई- सी खिली | ||
+ | आशा की कली | ||
+ | |||
+ | छेड़ा न तुम | ||
+ | छुईमुई- सि खिली | ||
+ | आस की कली | ||
+ | 12 | ||
+ | टूटता हुआ | ||
+ | तारा ही बना मन | ||
+ | दुआएँ माँगी | ||
+ | |||
+ | टुटदु जनु | ||
+ | गैंणा बणी गे मन | ||
+ | मन्काम्ना माँगि | ||
+ | -0- | ||
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19:55, 3 मई 2021 के समय का अवतरण
1
ऊसर मन
भाव कब उपजे
रहे निरीह
बाँजु च मन
भौ कबारी उपजी
रै बिचारू ह्वे
2
सूरज झाँके
रंग- रूप निहारे
दर्पण झील
सुर्ज देखणु
रंग-रूप च हेरदु
दर्पण ताल
3
गहराई में
कितने घर,बस्ती
बसाती झील
उख गैरै माँ
कतगा घौर, बस्ति
बसौंदु ताल
4
तुम साँझ की
ठण्डी बयार प्रिये!
मन लू घिरा
तु रुमुक कि
ठण्डी हवा छैं प्यारी
मन लू घिर्यूँ
5
साँझ ढले जो
तुमसे मिलने की
आशा ढलती
रूम्क पड़दि
तुम तैं मिलणै कि
आस ढळदि
6
अनावरण
करने लगी साँझ
रात जो आई
उठौण लग्गी
पर्दा तब रुमुक
रात ऐ जब
7
सुन री रैना
पाहुन कब थमे
ढलेगी तू भी
सूँण रे रात
ढुंगा कब थमिन
ढळी जैली तु
8
सागर देखो
जिंदगी की कहानी
ज्वार भाटा- सी
समोद्र द्याखा
जिंदगी कि य कानी
ज्वार-भाटा सि
9
मंथन कर
मन में ही अमृत
सागर -जैसे
छोळ लि दौं त
मन माँ इं अमरित
समोद्र जनूँ
10
सम विषम
समा खुद भीतर
सागर बन
सम-विसम
अफ्फु माँ इ समौ न
समोद्र बण
11
छेड़ो ना तुम
छुईमुई- सी खिली
आशा की कली
छेड़ा न तुम
छुईमुई- सि खिली
आस की कली
12
टूटता हुआ
तारा ही बना मन
दुआएँ माँगी
टुटदु जनु
गैंणा बणी गे मन
मन्काम्ना माँगि
-0-