भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अधरं संस्पृश्यापि(मुक्तक) / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(' संस्कृतानुवादकः-आचार्यःविशालप्रसादभट्टः अधरं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
+ | {{KKRachna | ||
+ | |रचनाकार=कविता भट्ट | ||
+ | |अनुवादक= | ||
+ | |संग्रह= | ||
+ | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | <poem> | ||
− | + | (संस्कृतानुवादकः-आचार्यःविशालप्रसादभट्टः) | |
− | + | ||
− | + | ||
− | संस्कृतानुवादकः-आचार्यःविशालप्रसादभट्टः | + | |
अधरं संस्पृश्यापि कण्ठः न कदापि सिञ्चितं शक्तं, | अधरं संस्पृश्यापि कण्ठः न कदापि सिञ्चितं शक्तं, |
17:57, 5 मई 2021 का अवतरण
(संस्कृतानुवादकः-आचार्यःविशालप्रसादभट्टः)
अधरं संस्पृश्यापि कण्ठः न कदापि सिञ्चितं शक्तं,
तेनैव चषकेण मम मध्वाभिलाषाऽऽसीत्।
सो मय्यन्विष्यन्नासीत् प्रतिपलं देवि!,
मया तस्मिन् केवलं मानवतायान्वेषणं विहितम्।।
ममान्तःकरणे भूत्वाऽपि यो सहैव नासीत्।
मदीया हृदयगतिस्तन्निकटैवासीत्।
स्मिततायाः शतं कारणानि सन्ति जगति,
पुनरप्यश्रुपूरिते नयने अहमुदासीना जाता।।
-0-
हिन्दी मूल रचना निम्नलिखित लिंक पर पढ़ सकते हैं-