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"आज़माना चाहिए / विजय वाते" के अवतरणों में अंतर

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06:23, 30 अक्टूबर 2008 के समय का अवतरण

शायरी के हुस्न को यों आज़माना चाहिए।
एक पल के वास्ते सब छूट जाना चाहिए।

हो गया है पिष्ट-पेषण अब ग़ज़ल में हर तरफ,
बात में अब और कुछ नावीन्य लाना चाहिए।

उग रही है हर मुहल्ले में बेशरम,
बागवानी का नया अन्दाज़ आना चाहिए।

चिमनियाँ, बादल घनेरे और भागमभाग के,
कुछ नया माहौल में बदलाव आना चाहिए।

सिर्फ भाषा में गणित की बात करना छोड़कर,
अब ग़ज़ल के शेर कुछ गुनगुनाना चहिए।