"मधुमय संवाद / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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कुछ न माँगा | कुछ न माँगा | ||
माँगी उसकी खुशी | माँगी उसकी खुशी | ||
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टूटे इन्द्रधनुष | टूटे इन्द्रधनुष | ||
राहुग्रस्त चन्द्रमा। | राहुग्रस्त चन्द्रमा। | ||
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स्वप्न गहन | स्वप्न गहन | ||
अंक में था चन्द्रमा | अंक में था चन्द्रमा | ||
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स्वप्न क्या टूट गया | स्वप्न क्या टूट गया | ||
प्रिय ही रूठ गया। | प्रिय ही रूठ गया। | ||
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बज्र शिलाएँ | बज्र शिलाएँ | ||
चढ़ाई भी नुकीली | चढ़ाई भी नुकीली | ||
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चढ़ें तो अंगदाह | चढ़ें तो अंगदाह | ||
प्रारब्ध में था लिखा। | प्रारब्ध में था लिखा। | ||
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मन है एक | मन है एक | ||
दुख सब अलग | दुख सब अलग | ||
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चूर चूर सपने | चूर चूर सपने | ||
चुभते काँच बन। | चुभते काँच बन। | ||
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पत्थर पूजे | पत्थर पूजे | ||
सिर भी टकराया | सिर भी टकराया | ||
पंक्ति 41: | पंक्ति 41: | ||
घायल हुआ माथा | घायल हुआ माथा | ||
यही अपनी गाथा। | यही अपनी गाथा। | ||
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तप्त भाल पे | तप्त भाल पे | ||
जड़ दू मैं चुम्बन | जड़ दू मैं चुम्बन | ||
पंक्ति 48: | पंक्ति 48: | ||
हृदय का सितार | हृदय का सितार | ||
मिटें ताप -संताप | मिटें ताप -संताप | ||
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अरसे बाद | अरसे बाद | ||
हुईं नेह बौछार | हुईं नेह बौछार | ||
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'''मधुमय संवाद''' | '''मधुमय संवाद''' | ||
ज्यों कोई मन्त्रोच्चार। | ज्यों कोई मन्त्रोच्चार। | ||
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मोती ही मोती | मोती ही मोती | ||
सुगन्ध से भी भरे | सुगन्ध से भी भरे | ||
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स्नेहसिक्त भुजाएँ | स्नेहसिक्त भुजाएँ | ||
कस कण्ठ लगाएँ। | कस कण्ठ लगाएँ। | ||
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पाखी-से उड़ | पाखी-से उड़ | ||
पहुँच जाते हैं भाव | पहुँच जाते हैं भाव | ||
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ढूँढूँ बन महेश। | ढूँढूँ बन महेश। | ||
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+ | '''25-11-21''' |
11:00, 21 दिसम्बर 2021 के समय का अवतरण
149
कुछ न माँगा
माँगी उसकी खुशी
मुट्ठीभर धूप सी
अँधेरे मिले
टूटे इन्द्रधनुष
राहुग्रस्त चन्द्रमा।
150
स्वप्न गहन
अंक में था चन्द्रमा
आँसू गीले नयन
भीगे कपोल
स्वप्न क्या टूट गया
प्रिय ही रूठ गया।
151
बज्र शिलाएँ
चढ़ाई भी नुकीली
बरसें अग्निमेघ
गिरे तो अंत
चढ़ें तो अंगदाह
प्रारब्ध में था लिखा।
152
मन है एक
दुख सब अलग
बाँटें न बँटे कभी
घायल पाँव
चूर चूर सपने
चुभते काँच बन।
153
पत्थर पूजे
सिर भी टकराया
हाथ कुछ न आया
प्रतिदान में
घायल हुआ माथा
यही अपनी गाथा।
154
तप्त भाल पे
जड़ दू मैं चुम्बन
तन- मन शीतल,
झंकृत तार
हृदय का सितार
मिटें ताप -संताप
155
अरसे बाद
हुईं नेह बौछार
घुला था अवसाद
कानों में पड़ा
मधुमय संवाद
ज्यों कोई मन्त्रोच्चार।
156
मोती ही मोती
सुगन्ध से भी भरे
बहुत अनमोल
ग्रीवा की शोभा
स्नेहसिक्त भुजाएँ
कस कण्ठ लगाएँ।
157
पाखी-से उड़
पहुँच जाते हैं भाव
गले लिपट जाते
अश्रु हर्षाते
तुम योगिनी बनी
ढूँढूँ बन महेश।
25-11-21