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किन आज' अहो नयपालि ठिटो
कविता, कविता भनि उफ्रि उठ्यो ?
छरितो र छिटो नयपालि ठिटो
कविता, कविता भनि उफ्रि उठयो ?
अहहा ! अहहा ! रमिता! रमिता!
कविता ! कविता! रमिता! रमिता!
कवितागत जो मन-मोहकता
कवितागत जो अति निर्मलता
कविताबिच जो अति उज्ज्वलता
कवितासित जो छ त शीतलता
छ त के सवितासित लौ त बता ?
तब पो त छिटो नयपालि' ठिटो
कविता कविता अनि उफ्रि उठ्यो ।
अहहा ! अहहा ! रमिता ! रमिता !
कविता! कविता! रमिता! रमिता!
रसरंगबिना नयपालि ठिटो
उसमा पनि झन् छरितो र छिटो
कविता-सरिताबिच हेलिनको
किन उत्सुकता दरसाउँदथ्यो ?
कविको रस जो रमिता छ कहाँ ?
रवि उष्ण अती, कवि शीतव्रती ।
रविको कविको गम भेद कती !
रविमा छ वहाँ रसरंग कहाँ ?
कविमा त यहाँ रसरंग महाँ ?
कविता-सरिता रस-रंग-युता
अति प्रोज्ज्वलताभरि शीतलता
छ र पो त यता कवितातिर यो
नयपालि ठिटो अब उफि उठ्यो ।
स्पन्दन-बाट २००४