भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"...के नाम / अलेक्सान्दर पूश्किन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 18: | पंक्ति 18: | ||
बीते वर्ष, बवण्डर आए | बीते वर्ष, बवण्डर आए | ||
हुए तिरोहित स्वप्न सुहाने, | हुए तिरोहित स्वप्न सुहाने, | ||
− | किसी परी-सा | + | किसी परी-सा रूप तुम्हारा |
भूला वाणी, स्वर पहचाने। | भूला वाणी, स्वर पहचाने। | ||
पंक्ति 32: | पंक्ति 32: | ||
हृदय हर्ष से फिर स्पन्दित है | हृदय हर्ष से फिर स्पन्दित है | ||
− | फिर से | + | फिर से झंकृत अन्तर-तार, |
उसे आस्था, मिली प्रेरणा | उसे आस्था, मिली प्रेरणा | ||
फिर से आँसू, जीवन, प्यार। | फिर से आँसू, जीवन, प्यार। |
13:12, 20 फ़रवरी 2022 के समय का अवतरण
|
मुझे याद है वह अद्भुत्त क्षण
जब तुम मेरे सम्मुख आईं,
निर्मल, निश्छल रूप छटा-सी
जैसे उड़ती-सी परछाईं।
घोर उदासी, गहन निराशा
जब जीवन में कुहरा छाया,
मन्द, मृदुल तेरा स्वर गूँजा
मधुर रूप सपनों में आया।
बीते वर्ष, बवण्डर आए
हुए तिरोहित स्वप्न सुहाने,
किसी परी-सा रूप तुम्हारा
भूला वाणी, स्वर पहचाने।
सूनेपन, एकान्त-तिमिर में
बीते, बोझिल, दिन निस्सार
बिना आस्था, बिना प्रेरणा
रहे न आँसू, जीवन, प्यार।
पलक आत्मा ने फिर खोली
फिर तुम मेरे सम्मुख आईं,
निर्मल, निश्छल रूप छटा-सी
मानो उड़ती-सी परछाईं।
हृदय हर्ष से फिर स्पन्दित है
फिर से झंकृत अन्तर-तार,
उसे आस्था, मिली प्रेरणा
फिर से आँसू, जीवन, प्यार।
रचनाकाल : 1825