भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आत्मन! ऎसे ही / प्रकाश" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रकाश |संग्रह= }} <Poem> नदी भागी जाती है सागर की ओर प...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
19:55, 3 नवम्बर 2008 के समय का अवतरण
नदी भागी जाती है
सागर की ओर
पाँवों पर झुक कर
लीन हो जाती है
यह नमस्कार की नित्यलीला है
आत्मन
ऎसे ही नमस्कार करता हूँ ।