"ग़ज़ल 13-15 / विज्ञान व्रत" के अवतरणों में अंतर
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+ | मुझसे क्या करता पहचान | ||
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+ | मुझमें रहता है सामान | ||
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+ | जो पता तुम जानते हो | ||
+ | हम वहाँ रहते नहीं हैं | ||
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+ | जानते हैं आपको हम | ||
+ | हाँ मगर कहते नहीं हैं | ||
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+ | जो तसव्वुर था हमारा | ||
+ | आप तो वैसे नहीं हैं | ||
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+ | बात करते हैं हमारी | ||
+ | जो हमें समझे नहीं हैं | ||
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+ | मैं जब ख़ुद को समझा और | ||
+ | मुझमें कोई निकला और | ||
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+ | यानी एक तजुरबा और | ||
+ | फिर खाया इक धोखा और | ||
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+ | होती मेरी दुनिया और | ||
+ | तू जो मुझको मिलता और | ||
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+ | मुझको कुछ कहना था और | ||
+ | तू जो कहता अच्छा और | ||
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+ | मेरे अर्थ कई थे काश | ||
+ | तू जो मुझको पढ़ता और | ||
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10:04, 31 मई 2022 के समय का अवतरण
13
ऐशपरस्ती के सामान
लेकिन पूरा घर वीरान
मुझमें वो बरसों से है
फिर भी मुझसे है अंजान
आज क़यामत आएगी
वो खोलेगा आज ज़बान
ख़ुद से ही नावाक़िफ़ था
मुझसे क्या करता पहचान
मैं अब ख़ुद से ग़ायब हूँ
मुझमें रहता है सामान
14
आप कब किसके नहीं हैं
हम पता रखते नहीं हैं
जो पता तुम जानते हो
हम वहाँ रहते नहीं हैं
जानते हैं आपको हम
हाँ मगर कहते नहीं हैं
जो तसव्वुर था हमारा
आप तो वैसे नहीं हैं
बात करते हैं हमारी
जो हमें समझे नहीं हैं
15
मैं जब ख़ुद को समझा और
मुझमें कोई निकला और
यानी एक तजुरबा और
फिर खाया इक धोखा और
होती मेरी दुनिया और
तू जो मुझको मिलता और
मुझको कुछ कहना था और
तू जो कहता अच्छा और
मेरे अर्थ कई थे काश
तू जो मुझको पढ़ता और