<poem>
ठीक-ठीक किस बखत
किसी को बतला देना चाहिए था
कि कुछ भी तो ठीक नहीं है ज़िन्दगी में
और मत जाओ कहकर बचा लेनी थी प्रेम-कहानी
ठीक किस बखत मान लेना चाहिए था
कि ये अकेलापन खा जाएगा हमें एक दिन
छत की कड़ियों पर लगे घुन की तरह
अब सब ठीक हो गया है दोस्त
हमने आत्मा का एक बडा बड़ा हिस्सारो रो कर - रोकर कर दिया है कितना नम,
हम ज़िन्दगी में दुख के पक्के,