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"आसीस अंजुरी भर / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'" के अवतरणों में अंतर

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माथा तुम्हारा
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हम पावन हो गए।
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छलकता सागर समेटे
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भुजपाश में बिजली भरे हम,
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बाँट दें सर्वस्व किसको
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व्याकुल बादल-से फिरे हम;
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उतर काँधों-पर तुम्हारे
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फिर सावन हो गए।
  
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आज राहत मिल गई
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सभी सुख यों
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अपने लुटाकर,
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और हल्का
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हो गया मन
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पीर का स्पर्श पाकर
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इस द्वार पर माथा झुकाकर
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स्नेह के आँसू हमारे
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मनभावन हो गए।
 
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09:31, 4 नवम्बर 2022 का अवतरण


आसीस अंजुरी भर लिये
हर द्वार पर
हमने पुकारा,
छू लिया
माथा तुम्हारा
हम पावन हो गए।
छलकता सागर समेटे
भुजपाश में बिजली भरे हम,
बाँट दें सर्वस्व किसको
व्याकुल बादल-से फिरे हम;
उतर काँधों-पर तुम्हारे
फिर सावन हो गए।

आज राहत मिल गई
सभी सुख यों
अपने लुटाकर,
और हल्का
हो गया मन
पीर का स्पर्श पाकर
इस द्वार पर माथा झुकाकर
स्नेह के आँसू हमारे
मनभावन हो गए।