Changes

{{KKCatNavgeet}}
<poem>
बिसरा दो
रिश्ते रेतीले
मन के पाहुन को
क्या बहकाना,
तुम गढ़ लो कोई
सभ्य बहाना
'''पल -दो पल
ऐसे भी जी लें।'''
 
अनीति-नीति का
मिट रहा अन्तर
पुष्प बनो या
हो जाओ पत्थर ;
'''अर्थहीन सब
सागर- टीले ।'''
 
यदि मुकर गई
नयनों की भाषा
साथ क्या देगी
पंगु अभिलाषा;
'''बूँद-बूँद पीड़ा-
को पी लें ।'''
</poem>