भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"नई भोर / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' }} Category:...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 22: पंक्ति 22:
 
जगे प्रेम नित,
 
जगे प्रेम नित,
 
दुख सारी
 
दुख सारी
दुनिया का हर लो।
+
दुनिया का हर लो।
 +
[22-10-1989;अणुव्रत जन-प्रथम-91,अनुभूति 1जन-2005]
 
</poem>
 
</poem>

08:00, 2 जनवरी 2023 के समय का अवतरण

नई भोर की
नई किरन का
स्वागत कर लो ।
आँखों में तुम
आशाओं का
          सागर भर लो
भूलो बिसरी बातें
दर्द-भरी
अँधियारी रातें ।
शुभकामना
की देहरी पर
सूरज धर लो ।
वैर-भाव मिट जाए
मन से , तन से
इस जीवन से ।
जगे प्रेम नित,
दुख सारी
दुनिया का हर लो।
[22-10-1989;अणुव्रत जन-प्रथम-91,अनुभूति 1जन-2005]