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"ग़ज़ल संचयन / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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22:00, 16 मई 2023 का अवतरण
डी. एम. मिश्र : ग़ज़ल संचयन
रचनाकार | डी. एम. मिश्र |
---|---|
प्रकाशक | शिल्पायन पब्लिशर्स एण्ड डिस्ट्रीब्यूटर्स, 10295, लेन नं 01, वैस्ट गोरखपार्क, शाहदरा, दिल्ली -110032 |
वर्ष | प्रथम संस्करण 2023 |
भाषा | हिंदी |
विषय | रचना संग्रह |
विधा | ग़ज़ल |
पृष्ठ | 184 |
ISBN | 978-93-92195-08-2 |
विविध |
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रचनाएँ
- भूमिका / डी. एम. मिश्र : ग़ज़ल संचयन / जीवन सिंह
- प्राणों में ताप भर दे वो राग लिख रहा हूँ / डी. एम. मिश्र
- आइने में खरोचें न दो इस क़दर / डी. एम. मिश्र
- तमाशा देखना हो तो ज़माना दौड़ आता है / डी .एम. मिश्र
- सत्ता की कामयाबियों में देखिये उसे / डी. एम. मिश्र
- बुझे न प्यास तो फिर सामने नदी क्यों है / डी. एम. मिश्र
- भेदे जो बड़े लक्ष्य को वो तीर कहाँ है / डी. एम. मिश्र
- अमीरी है तो फिर क्या है हर इक मौसम सुहाना है / डी. एम मिश्र
- रोज़ किसी की शील टूटती पुरूषोत्तम के कमरे में / डी. एम. मिश्र
- नम मिट्टी पत्थर हो जाये ऐसा कभी न हो / डी. एम. मिश्र
- बेाझ धान का लेकर वो जब हौले-हौले चलती है / डी. एम. मिश्र
- गाँवों का उत्थान देखकर आया हूँ / डी. एम. मिश्र
- किसी जन्नत से जाकर हुस्न की दौलत उठा लाये / डी. एम. मिश्र
- छू लिया मिट्टी तो थोड़ा हाथ मैला हो गया / डी. एम. मिश्र
- ग़ज़ल ऐसी कहो जिससे कि मिट्टी की महक आये / डी. एम. मिश्र
- खिली धूप से सीखा मैने खुले गगन में जीना / डी. एम. मिश्र
- शहर के ऐशगाहों में टँगे दुख गाँव वालों के / डी. एम. मिश्र
- फिर आ गयी है नयी योजना निमरा करे सवाल / डी. एम. मिश्र
- देश की धरती उगले सोना वो भी लिखो तरक़्क़ी में / डी. एम. मिश्र
- कौन कहता है कि वो फंदा लगा करके मरा / डी. एम. मिश्र
- जुल्म और अन्याय सहने के लिए मजबूर था / डी. एम. मिश्र
- बनावट की हँसी अधरों पे ज़्यादा कब ठहरती है / डी. एम. मिश्र
- फ़ितरतों से दूर उसकी मुफ़लिसी अच्छी लगी / डी. एम. मिश्र
- कभी लौ का इधर जाना, कभी लौ का उधर जाना / डी. एम. मिश्र
- मुहब्बत टूट कर करता हूँ, पर अंधा नहीं बनता / डी. एम. मिश्र
- आदमी देवता नही होता / डी. एम. मिश्र
- जिनके जज़्बे में जान होती है / डी. एम. मिश्र
- प्यार मुझको भावना तक ले गया / डी. एम. मिश्र
- पहले अपना चेहरा रख / डी. एम मिश्र
- ख़्वाब सब के महल बँगले हो गये / डी. एम. मिश्र
- लंबी है ये सियाहरात जानता हूँ मैं / डी. एम. मिश्र
- शौक़िया कुछ लोग चिल्लाने के आदी हो गये / डी .एम. मिश्र
- अँधेरा है घना फिर भी ग़ज़ल पूनम की कहते हो / डी .एम. मिश्र
- अँधेरा जब मुक़द्दर बन के घर में बैठ जाता है / डी. एम. मिश्र
- समन्दर की लहर पहचानता हूँ क्या करूँ लेकिन / डी. एम. मिश्र
- हवा में है वो अभी आसमान बाक़ी है / डी. एम. मिश्र
- मिट्टी का जिस्म है तो ये मिट्टी में मिलेगा / डी. एम. मिश्र
- बड़े वो लोग हैं किरदार की बातें करते / डी. एम. मिश्र
- करें विश्वास कैसे सब तेरे वादे चुनावी हैं / डी. एम. मिश्र
- मगर हुआ इस बार भी वही हर कोशिश बेकार गई / डी. एम. मिश्र
- राजनीति में आकर गुंडो के भी बेड़ापार हो गये / डी.एम. मिश्र
- इक तरफ़ हो एक नेता इक तरफ़ सौ भेड़िये / डी. एम. मिश्र
- वोटरों के हाथ में मतदान करना रह गया / डी. एम. मिश्र
- हम भारत के भाग्य-विधाता मतदाता चिरकुट आबाद / डी. एम. मिश्र
- सुनता नही फ़रियाद कोई हुक्मरान तक / डी. एम. मिश्र
- मौत का मंज़र हमारे सामने था / डी. एम. मिश्र
- बडे आराम से वो क़त्ल करके घूमता है / डी. एम. मिश्र
- तुमने यार बजा फ़रमाया ग़ज़ल तो एक इशारा है / डी. एम. मिश्र
- कितने अनपढ़ भी हैं देखे कबीर होते हैं / डी. एम. मिश्र
- पत्थर दिखा के उसको डराया नहीं जाता / डी. एम. मिश्र
- हमने गर आसमाँ उठाया है / डी. एम. मिश्र
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