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"ग़ज़ल संचयन / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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− | * [[एक ज़ालिम ने मेरी नींद उड़ा रक्खी है / डी. एम. मिश्र]] | + | * [[एक ज़ालिम ने मेरी नींद उड़ा रक्खी है / डी .एम. मिश्र]] |
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* [[मेरे हिस्से की जमीं बंजर है / डी. एम. मिश्र]] | * [[मेरे हिस्से की जमीं बंजर है / डी. एम. मिश्र]] |
22:52, 10 जुलाई 2023 का अवतरण
डी. एम. मिश्र : ग़ज़ल संचयन
रचनाकार | डी. एम. मिश्र |
---|---|
प्रकाशक | शिल्पायन पब्लिशर्स एण्ड डिस्ट्रीब्यूटर्स, 10295, लेन नं 01, वैस्ट गोरखपार्क, शाहदरा, दिल्ली -110032 |
वर्ष | प्रथम संस्करण 2023 |
भाषा | हिंदी |
विषय | रचना संग्रह |
विधा | ग़ज़ल |
पृष्ठ | 184 |
ISBN | 978-93-92195-08-2 |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
रचनाएँ
- भूमिका / डी. एम. मिश्र : ग़ज़ल संचयन / जीवन सिंह
- प्राणों में ताप भर दे वो राग लिख रहा हूँ / डी. एम. मिश्र
- आइने में खरोचें न दो इस क़दर / डी. एम. मिश्र
- तमाशा देखना हो तो ज़माना दौड़ आता है / डी .एम. मिश्र
- सत्ता की कामयाबियों में देखिये उसे / डी. एम. मिश्र
- बुझे न प्यास तो फिर सामने नदी क्यों है / डी. एम. मिश्र
- भेदे जो बड़े लक्ष्य को वो तीर कहाँ है / डी. एम. मिश्र
- अमीरी है तो फिर क्या है हर इक मौसम सुहाना है / डी. एम मिश्र
- रोज़ किसी की शील टूटती पुरूषोत्तम के कमरे में / डी. एम. मिश्र
- नम मिट्टी पत्थर हो जाये ऐसा कभी न हो / डी. एम. मिश्र
- बेाझ धान का लेकर वो जब हौले-हौले चलती है / डी. एम. मिश्र
- गाँवों का उत्थान देखकर आया हूँ / डी. एम. मिश्र
- किसी जन्नत से जाकर हुस्न की दौलत उठा लाये / डी. एम. मिश्र
- छू लिया मिट्टी तो थोड़ा हाथ मैला हो गया / डी. एम. मिश्र
- ग़ज़ल ऐसी कहो जिससे कि मिट्टी की महक आये / डी. एम. मिश्र
- खिली धूप से सीखा मैने खुले गगन में जीना / डी. एम. मिश्र
- शहर के ऐशगाहों में टँगे दुख गाँव वालों के / डी. एम. मिश्र
- फिर आ गयी है नयी योजना निमरा करे सवाल / डी. एम. मिश्र
- देश की धरती उगले सोना वो भी लिखो तरक़्क़ी में / डी. एम. मिश्र
- कौन कहता है कि वो फंदा लगा करके मरा / डी. एम. मिश्र
- जुल्म और अन्याय सहने के लिए मजबूर था / डी. एम. मिश्र
- बनावट की हँसी अधरों पे ज़्यादा कब ठहरती है / डी. एम. मिश्र
- फ़ितरतों से दूर उसकी मुफ़लिसी अच्छी लगी / डी. एम. मिश्र
- कभी लौ का इधर जाना, कभी लौ का उधर जाना / डी. एम. मिश्र
- मुहब्बत टूट कर करता हूँ, पर अंधा नहीं बनता / डी. एम. मिश्र
- आदमी देवता नही होता / डी. एम. मिश्र
- जिनके जज़्बे में जान होती है / डी. एम. मिश्र
- प्यार मुझको भावना तक ले गया / डी. एम. मिश्र
- पहले अपना चेहरा रख / डी. एम मिश्र
- ख़्वाब सब के महल बँगले हो गये / डी. एम. मिश्र
- लंबी है ये सियाहरात जानता हूँ मैं / डी. एम. मिश्र
- शौक़िया कुछ लोग चिल्लाने के आदी हो गये / डी .एम. मिश्र
- अँधेरा है घना फिर भी ग़ज़ल पूनम की कहते हो / डी .एम. मिश्र
- अँधेरा जब मुक़द्दर बन के घर में बैठ जाता है / डी. एम. मिश्र
- समन्दर की लहर पहचानता हूँ क्या करूँ लेकिन / डी. एम. मिश्र
- हवा में है वो अभी आसमान बाक़ी है / डी. एम. मिश्र
- मिट्टी का जिस्म है तो ये मिट्टी में मिलेगा / डी. एम. मिश्र
- वो बड़े लोग हैं किरदार की बातें करते / डी. एम. मिश्र
- करें विश्वास कैसे सब तेरे वादे चुनावी हैं / डी. एम. मिश्र
- मगर हुआ इस बार भी वही हर कोशिश बेकार गई / डी. एम. मिश्र
- राजनीति में आकर गुंडो के भी बेड़ापार हो गये / डी.एम. मिश्र
- इक तरफ़ हो एक नेता इक तरफ़ सौ भेड़िये / डी. एम. मिश्र
- वोटरों के हाथ में मतदान करना रह गया / डी. एम. मिश्र
- हम भारत के भाग्य-विधाता मतदाता चिरकुट आबाद / डी. एम. मिश्र
- सुनता नही फ़रियाद कोई हुक्मरान तक / डी. एम. मिश्र
- मौत का मंज़र हमारे सामने था / डी. एम. मिश्र
- बडे आराम से वो क़त्ल करके घूमता है / डी. एम. मिश्र
- तुमने यार बजा फ़रमाया ग़ज़ल तो एक इशारा है / डी. एम. मिश्र
- कितने अनपढ़ भी हैं देखे कबीर होते हैं / डी. एम. मिश्र
- पत्थर दिखा के उसको डराया नहीं जाता / डी. एम. मिश्र
- हमने गर आसमाँ उठाया है / डी. एम. मिश्र
- इक घड़ी भी जियो इक सदी की तरह / डी. एम. मिश्र
- बहुत तलाशा मैंने लेकिन मिला न कोई बेईमान / डी. एम. मिश्र
- गुमराह अक्सर हो गया जहाँ रास्ता आसान था / डी. एम. मिश्र
- कहीं इरादा रूपया है तो कहीं तरक़्क़ी है / डी. एम. मिश्र
- दरिया का हुस्न छोटे से क़तरे में देखिये / डी. एम. मिश्र
- है वही दुनिया नये अंदाज़ में दिखने लगी / डी. एम. मिश्र
- इन बुज़़ु़र्गों की ज़रूरत अब कहीं पड़ती नहीं / डी. एम. मिश्र
- झोंपड़ी में हों या हवेली में / डी. एम. मिश्र
- धूप थी, लंबा सफ़र था, दूर तक साया न था / डी. एम. मिश्र
- है ज़माने को ख़बर हम भी हुनरदारों में हैं / डी. एम. मिश्र
- दरबारियों की भीड़ है दरबार से चलो / डी. एम. मिश्र
- असफल हों या सफल हों, पर आस मर न जाये / डी. एम. मिश्र
- पुरख़तर यूँ रास्ते पहले न थे / डी. एम. मिश्र
- मेरी सुबहों मेरी शामों पे बुलडोज़र चला देगा / डी. एम. मिश्र
- आशनाई की ग़ज़ल गाने से कुछ हासिल नहीं / डी. एम. मिश्र
- आग लगाने वाले भी कम नहीं यहाँ / डी. एम. मिश्र
- एक सोने का मगर झूठा शज़र था सामने / डी. एम. मिश्र
- किससे कहूँ कि खेतों से हरियाली ग़ायब है / डी. एम. मिश्र
- आपने सोचा कभी है क्यों मरे भूखा किसान / डी. एम. मिश्र
- जामे ज़हर भी पी गया अश्कों में ढालकर / डी. एम. मिश्र
- मेरा प्यार बेशक समंदर से भी है / डी .एम. मिश्र
- यूँ ही रहा तो खेती करने वाले नहीं मिलेंगे / डी. एम. मिश्र
- महकती फ़जा का गुमाँ बन गया मैं / डी .एम. मिश्र
- मंज़िल हमारी और है रस्ते हमारे और / डी. एम. मिश्र
- गूंगे-बहरे बन जाएँ मंज़ूर नहीं / डी. एम. मिश्र
- हक़ीक़त समझते नहीं लोग फिर भी / डी. एम. मिश्र
- गीत ग़ज़ल गाना दरबारी सबके बस की बात नहीं / डी. एम. मिश्र
- मेरे पाँवों के काँटे भी मुहब्बत की निशानी हैं / डी. एम. मिश्र
- बेला, जुही, चमेली, चम्पा, हरसिंगार लिख दे / डी. एम. मिश्र
- मेरी फ़रियाद भी सुनने मगर आता नहीं कोई / डी. एम. मिश्र
- इतनी-सी इल्तिज़ा है चुप न बैठिए हुज़ूर / डी. एम. मिश्र
- सामने गर हो किनारा तो बहुत कुछ शेष है / डी. एम. मिश्र
- तुम्हारे साथ चलने का न सुख पाता तो क्या गाता / डी. एम. मिश्र
- मुझे भी हारकर तेवर दिखाना पड़ गया आखि़र / डी. एम. मिश्र
- मैं शोला तो नहीं फिर भी हूँ इक नन्हीं-सी चिन्गारी / डी. एम. मिश्र
- टूट कर जाता बिखर गर हौसला होता नहीं / डी. एम. मिश्र
- दिल से जो लफ़्ज निकले उसे प्यार बना देना / डी. एम. मिश्र
- जिसे कोई आसक्ति न हो मैं उस फ़क़ीर से डरता हूँ / डी. एम. मिश्र
- ज़िन्दगी जितना तुझको पढ़ता हूँ / डी. एम. मिश्र
- बिना रीढ़ वाले भी कैसे खड़े हैं / डी. एम. मिश्र
- ज्योतिषी सबकी कुंडली जाने / डी. एम. मिश्र
- फ़र्ज़ अपना भूल जाये उस दिये को फूँक दो / डी. एम. मिश्र
- मदद का भरोसा दिला करके लूटे / डी. एम. मिश्र
- ज़हरीले साँपों से बचना मुश्किल है / डी. एम. मिश्र
- ज़माने को ताक़त दिखाने चला है / डी. एम. मिश्र
- हाथियों को कोई पाबंदी नहीं वो खूब खायें / डी. एम. मिश्र
- जंग लड़नी है तो बाहर निकलो / डी. एम. मिश्र
- ख़ुद की कभी नज़र से सामना नहीं होता / डी. एम. मिश्र
- हवा खि़लाफ़ है लेकिन दिए जलाता हूँ / डी. एम. मिश्र
- ग़ज़लकार सब लगे हुए फ़नकारी में / डी. एम. मिश्र
- अब ये ग़ज़लें मिज़ाज बदलेंगी / डी. एम. मिश्र
- उड़ी ख़बर कि शहर रोशनी में डूबा है / डी. एम. मिश्र
- बवंडर उठ रहा है क्या तुम्हें इसकी ख़बर भी है / डी. एम. मिश्र
- ज़हर बो कर बहुत खुश है बहुत इतरा रहा है वो / डी. एम. मिश्र
- देश के हालात मेरे बद से बदतर हो गये / डी. एम. मिश्र
- मुझे यकीन है सूरज यहीं से निकलेगा / डी. एम. मिश्र
- भक्त नादान बने बैठे हैं / डी. एम. मिश्र
- दाना डाल रहा चिड़ियों को मगर शिकारी है / डी. एम. मिश्र
- कदम-कदम पे दोस्तो यहाँ पे ख़तरा है / डी. एम. मिश्र
- ग़रीबी से बढ़कर सज़ा ही नहीं है / डी. एम. मिश्र
- हमें मुमराह करके क्या पता वो कम निकल जाये / डी .एम. मिश्र
- हम कब तक उसको माफ़ करें अब आर पार हो जाने दो / डी. एम. मिश्र
- बोलने से लोग घबराने लगे / डी. एम. मिश्र
- बड़ा शोर है गीत कैसे सुनाऊँ / डी. एम. मिश्र
- गरीबों के बारिश में घर गिर गये हैं / डी. एम. मिश्र
- बहुत कुछ तुम्हारे शहर से है ग़ायब / डी. एम. मिश्र
- किसी सैलाब के आने की आशंका से डरता हूँ / डी. एम. मिश्र
- हो गयी अंधी है मद में चूर सत्ता / डी. एम. मिश्र
- ज़ोर मुझ पर आज़माना चाहता है / डी. एम. मिश्र
- रास्ता यूँ मेरा ढलान में है / डी. एम. मिश्र
- ग़मे आशिक़ी ने सँभलना सिखाया / डी. एम. मिश्र
- पहले की तरह अब उन्हें उल्फ़त नहीं रही / डी. एम. मिश्र
- छूट गया घर तब जाना घर क्या होता है / डी. एम. मिश्र
- वो समंदर है तो होने दीजिए / डी. एम. मिश्र
- आग जलाकर रक्खो मौसम नम ज़्यादा है / डी. एम. मिश्र
- भँवर में है कश्ती किनारे कहाँ हैं / डी .एम. मिश्र
- ग़मज़दा आंखों का दो बूंद नीर कैसे बचे / डी. एम. मिश्र
- अंधों को भले लग रहा फस्लेबहार है / डी. एम. मिश्र
- मारा गया इंसाफ़ मांगने के जुर्म में / डी .एम. मिश्र
- उधर बुलंदी पे उड़ता हुआ धुआँ देखा / डी. एम. मिश्र
- ख़बर वो नहीं जो दिखायी गयी है / डी .एम. मिश्र
- आप मजे में हैं तो क्या फ़स्लेबहार है / डी. एम. मिश्र
- कृष्न करै तो लीला बोलो, किसना करै छिनारा / डी. एम. मिश्र
- दाग़ मेरे भी दामन पर है, दाग़दार तो मैं भी / डी. एम. मिश्र
- तूफ़ानों से बचने का अब समय नहीं / डी. एम. मिश्र
- अमन के दुश्मनों से डर है मेरी जान ले लेंगे / डी .एम. मिश्र
- उम्र बेशक मुझे थोड़ी कम चाहिए / डी .एम. मिश्र
- वक़्त ही बदला है केवल और क्या बदला है आज / डी .एम. मिश्र
- चलो गुनगुनाएँ ग़ज़ल के बहाने / डी .एम. मिश्र
- उजड़ रहा है चमन इसको बचाऊँ कैसे / डी .एम. मिश्र
- जानते सब हैं बोलता नहीं है कोई भी / डी .एम. मिश्र
- एक ज़ालिम ने मेरी नींद उड़ा रक्खी है / डी .एम. मिश्र
- आंख वाले हो के भी अंधे हुए / डी. एम. मिश्र
- मेरे हिस्से की जमीं बंजर है / डी. एम. मिश्र
- गांव भी अब कहाँ सुरक्षित है / डी. एम. मिश्र
- दिख रहा खाली जो कल वह भी भरा था / डी. एम. मिश्र
- आप इतने बेख़बर बैठे हुए / डी. एम. मिश्र
- यह हमारी एकता ही देश की पहचान है / डी. एम. मिश्र
- जान लेकर मैं हथेली पे चला करता हूं / डी. एम. मिश्र
- भूख पहले है कि है भगवान पहले / डी. एम. मिश्र
- आपको अपने बदलते रंग न दिखते / डी. एम. मिश्र
- कैसे निजात पाएं, हैं घात में शिकारी / डी. एम. मिश्र
- चिनगारियों की सुर्ख डगर देख रहा हूं / डी. एम. मिश्र
- तमाशाई बने रहना मुझे अच्छा नहीं लगता / डी. एम. मिश्र
- गो इशारों में हम बात कहते नहीं / डी. एम. मिश्र
- सवेरा तो होगा इसी आस में हूँ / डी. एम. मिश्र