भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"चाहत / कात्यायनी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कात्यायनी |संग्रह= }} <Poem> ख़ामोश उदास घंटियों की ब...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 24: | पंक्ति 24: | ||
सरगर्मियों और जोख़िम के | सरगर्मियों और जोख़िम के | ||
एकदम बीचोंबीच खड़े थे । | एकदम बीचोंबीच खड़े थे । | ||
− | |||
</poem> | </poem> |
20:10, 15 नवम्बर 2008 का अवतरण
ख़ामोश उदास घंटियों की
बज उठने की सहसा उपजी ललक,
घास की पत्तियों का
मद्धम संगीत
रेगिस्तान में गूँजती
हमें खोज लेने वाले की विस्मित पुकार,
दहकते जंगल में
सुरक्षित बच रहा
कोई नम हरापन ।
यूँ आगमन होता है
आकस्मिक
प्यार का
शुष्कता के किसी यातना शिविर में भी
और हम चौंकते नहीं
क्योंकि हमने उम्मीदें बचा रखी थीं
और अपने वक़्त की तमाम
सरगर्मियों और जोख़िम के
एकदम बीचोंबीच खड़े थे ।