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जीवन में बस तुम मिलो, मुझको तो हर बार।
इससे बढ़कर कुछ नहीं, इस जग का उपहार।।
240
गर्म तवे पर बैठकर, खाएँ कसम हज़ार ।
दुर्जन सुधरें ना कभी,लाख करो उपचार॥
241
चाहे तीरथ घूम लो,पढ़ लो सभी पुराण ।
छल -कपट मन में भरे, हो कैसे कल्याण ॥
242
वाणी में ही प्रभु बसे, मन में कपट कटार ।
लाख भजन करते रहो,जीवन है बेकार ॥
243
आचमन कटुक वचन का, करते जो दिन -रात ।
घर-बाहर वे बाँटते, शूलों की सौगात ॥
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